जीवन
jiwan
एक चढ़ते-उतरते जीवन-क्रम में जाना कि
झूठ बोलना और अपने झूठ को सच में बदल देना
सबसे बड़ी कला है
लोग झूठ बोलते वक़्त क़समें ऐसे खाते मिले
जैसे सारी दुनिया राख हो जाएगी उनकी क़सम से
वे माहिर थे,
बड़े जतन से सीखी थी उस्तादी
उनके झूठ के वितान के नीचे
हर बार सच को दफ़ना दिया गया
मैं हटती रही हूँ चार क़दम पीछे
पीछे और पीछे
वे मेरी छाती पर पैर रख निकलते रहे
काश की सीख लिया होता बचपन में ही पूरी शिद्दत से झूठ बोलना
माँ! तुमने क्यों कहा हर बार कि झूठ बोलना पाप है?
और किसी अपने की हो जाती है असमय मृत्यु
आज जब चारों तरफ़ झूठ की चकरी में उलझे हैं रिश्ते
मैं बार-बार टूटती हूँ सच बोलने के कारण
छूटते जाते हैं अनगिन दोस्त
बहुत से अपने
इस झूठ की मायानगरी में गुनाह रहा मेरा हर बार
सच बोलना...
- रचनाकार : सोनी पांडेय
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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