हम क्यों लिखते हैं?
शोहरत बटोरने के लिए?
न्याय की भीख के लिए?
या फिर अपने अंदर के ख़ाली स्थान को भरने के लिए?
लिखना एक प्रक्रिया है दोस्त,
इससे फ़्रस्टेशन के कीड़े काफ़ी हद तक मर जाते हैं,
ठीक वैसे ही जैसे एक आदमी के अंदर की औरत मर जाती है
जब वो किसी पराई औरत के जिस्म को टटोल रहा होता है,
इससे ग़ुलामी की बेड़ियों को ललकारने की शक्ति मिलती है,
ठीक वैसे ही जैसे काल-चक्र को मिलती है शिव की तीसरी आँख से,
इससे आकाशगंगा में हो रहे अनगिनत विस्फोटों की आवाज़ें सुरीली लगती हैं,
इससे वर्णमाला की माला में मोतियाँ पिरोने का एक अनोखा ज्ञान प्राप्त होता है,
इससे मन में उठ रहे तूफ़ान को तो शांत किया जा सकता है,
पर मेरे दोस्त इससे तन में जल रही अग्नि कैसे शांत होगी?
इतना ही नहीं एक आकर्षक लेख पुरानी शराब के जैसा होता है,
जितना पुराना उसका उपयोग उतना गहरा उसका नशा,
यूँ तो नशे की आदत नहीं पड़ी कभी
या यूँ कहिए ज़रुरत ही नहीं पड़ी,
पर हाँ पुरानी कविताएँ नशे का काम करती हैं,
और आख़िर हम क्यों लिखते हैं?
इसपे ही आ कर रुक जाती हैं,
ठीक वैसे ही जैसे मेरे कमरे की घड़ी रुकी है पिछले कुछ दिनों से,
और मैं उन्हीं कुछ दिनों के अंशों में तलाश रहा हूँ,
कि हमारा लिखना ज़रूरी नहीं बल्कि पढ़े जाना है।
- रचनाकार : मोहम्मद अनस
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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