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दुःख से कैसा छल

duःkh se kaisa chhal

ज्याेति शोभा

ज्याेति शोभा

दुःख से कैसा छल

ज्याेति शोभा

मूरख है कालीघाट का पंडित

सोचता है

मंत्रोचार से और लाल पुष्पों से ढक लेगा पाप

नहीं फलेगा कुल गोत्र के बहाने कृशकाय देह का दुःख

मूरख है ममता बंदोपाध्याय का रसोइया

दुःख को सुंदर माछ की तरह रांधने का

प्रयास करता है

मूरख है धर्मतल्ला का व्यापारी

गरम चादर की तरह

नित ही

दुःख बेचकर ख़रीदता है दुःख

मूरख है विक्टोरिया का बूढ़ा कोचवान

हिनहिनाते हैं दूर दूर खड़े पशु तो

मात्र चारा पानी देता है उन्हें

कामदेव के बाण की तरह मूरख है संसार

द्वार पर आम-पत्र बाँधता है

नहीं जानता

उसी के सुसज्जित कुटुंब से निकला है दुःख जुलूस बन के

और सबसे मूरख हैं ये कवि

संसार के दुःख को भाषा से छलते हैं।

स्रोत :
  • रचनाकार : ज्योति शोभा
  • प्रकाशन : समालोचन

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