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चाहा नहीं था, ऐसे याद रहो तुम

chaha nahin tha, aise yaad raho tum

अनुवाद : दुष्यंत

मोनालिसा जेना

मोनालिसा जेना

चाहा नहीं था, ऐसे याद रहो तुम

मोनालिसा जेना

और अधिकमोनालिसा जेना

    चाहा नहीं था, ऐसे याद रहो तुम

    जहाँ भी रहो

    एक बसंत जैसा प्रेम

    और वैशाख जैसी उसकी कठोर कहानी।

    विच्छेद से और भी व्यथामय

    प्रणय में कपटता

    मेरी अनकही सुबकियाँ जैसी

    ऋतु भरे बारिश की बूँदें

    काशवन के भीतर कणसमान

    आँसू बन गए

    पानी की घनी धार

    जाने कब

    एक-एक बालीगरड़ा कंकर

    जैसी घनीभूत स्मृतियाँ

    तुम्हारे आलिंगन की मादकता की

    अभिनय की

    तिक्त अवांछित जितने सारे उपहार...

    समय आता है

    और रख जाता है

    एक वास्तव क्षण

    जब परख लेने को बाध्य होती है आत्मा

    आत्मा के साथ सँजोग सब—

    सँजोग नहीं तो और क्या

    प्रलोभन सब इन्द्रियों की बातें

    समय के नियंत्रण

    प्रतिकूल पलों में दम्भ रखने का जो सामर्थ्य

    हृदय सँभाल पाए?

    इसलिए हृदय सभी के लिए नहीं

    तुम मस्तिष्क का खेल खेल गए

    मैं मस्तिष्क की दृढ़ता में खड़ी रही

    हृदय भंग की कथा

    कोई नहीं जानता

    हृदय अभी भी रोता है

    अभी भी शिथिल लगता है

    वही अभूला अवसाद में

    अभी भी लहू पानी होता है

    पानी आँसू पोंछकर बह जाता है

    माटी की अपहंच गहनता को

    तुम्हारी और मेरी कुछ सुखमय स्मृतियाँ

    अब भी कातर करती हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : रहो तुम नक्षत्र की तरह (पृष्ठ 122)
    • रचनाकार : मोनालिसा जेना
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2018

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