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चार प्रशांत अनुदेश

chaar prshaant anudesh

सत्यव्रत रजक

सत्यव्रत रजक

चार प्रशांत अनुदेश

सत्यव्रत रजक

और अधिकसत्यव्रत रजक

     

    एक  

    जोंक
    भट्टी में तरल होने लगी है उम्र की संजीदा नींद। 

    तो क्या हम जाने दें इस सरल वाक्य को —
    ‘मनुष्य का ख़ून गुरिल्ले से अधिक बोलता है’

    दोनों पसलियों के मध्य का माँस मैली मौत पा चुका है।

    फिर भी निर्दोष आहट को
    आँख के पसीने से
    नहीं पोंछा जा सकता है।

    जाने दो जोंक यह अँगूरों का मौसम

    दो 

    बहरहाल के बीच

    कोलाहल में
    शोर बहुत था
    चुप्पी में
    ज़ुकाम बहुत था

    स्वस्थ घड़ी में पाँच मिनट कम थे
    बदहाल मनुष्य की छाती पर था तिल
    आँखों में थी छनी धूल

    दीवाल के तले जमा हो गया था
    उतरकर रंग

    —फुटबॉल की गेंद में हवा बहुत थी।

    तीन

    बोगेनवेलिया का मर्सिया

    उनमें कोई होड़ नहीं है
    न ज़मीन तोड़ने की जल्दबाज़ी
    न नाभि में अमृत कुंभ की प्रचलित लालसा

    वे आहिस्ता-आहिस्ता भरते हैं ख़ून
    वे आहिस्ता-आहिस्ता दीवारों पर चढ़ते हैं
    और एक सुबह पूरे झुँड में सूरज के सामने गाते हैं।

    चार 

    श्लोकवय
    हज़ार ध्वनियों के पीछे-पीछे छूट गई एक गेंद हाथ से
    हजार ध्वनियाँ नहीं छूटी
    (अंतस का श्लोक है)
    सभी के लिए कुछ को नहीं छुटा पाता
    (आलस का श्लोक है)
    गेंद आ जाए हाथ में सिवाय हवा न हो पाए ताती
    पत्ते न जर पाएँ गिलहरी शाखा न चूके।
    (सब-सब हो जाने का श्लोक है)

    स्रोत :
    • रचनाकार : सत्यव्रत रजक
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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