बिना किसी तानाशाह की तस्वीर के
bina kisi tanashah ki taswir ke
चंद्रकांत देवताले
Chandrakant Devtale
बिना किसी तानाशाह की तस्वीर के
bina kisi tanashah ki taswir ke
Chandrakant Devtale
चंद्रकांत देवताले
और अधिकचंद्रकांत देवताले
पहाड़ी के मोड़ पर के उस अकेले मकान को
देखकर मैंने पूछा वह किसका घर है
इतना सुंदर और हरे एकांत में
दान बाबू झाडू लगाना बंद कर बोले
साहब वह बच्चों का जेल है
और बस शुरू हो गई मेरे भीतर
एक ऐसी उथल-पुथल
जिसमें गिरफ़्तार होने लगी
एक बहुत बड़ी दुनिया
अपने हवाई जहाज़ों, बमवर्षक विमानों
टेलीविज़नों, छापाख़ानों, थिएटरों
और विश्वविद्यालयों और श्रेष्ठ भोजनालयों सहित
संगीत की कनपटी पर बंदूक़ दाग़ती
एक बहुत बड़ी दुनिया
बच्चे की छोटी-सी आँख में
चोर या डाकू की तरह
बंद होने लगी
बच्चों का जेलख़ाना कैसा होगा
सोचकर मैं पहुँचा वहाँ
अब तक सुने थे मैंने
बच्चों के स्कूल-बग़ीचे
मैंदान बच्चों का
जानी थी मैंने उनकी दुनिया
तितली के पंख
और गेंद के साथ उड़ती-नापती धरती
पर वहाँ पहुँचकर मैंने देखा
जैसे भूकंप में अँधेरा बरस रहा था
पक्षियों के थरथराते अंडों पर
मैं न्यायधीश नहीं था
मेरी आत्मा चोर की तरह झाँक रही थी
सफ़ेद दुनिया के भीतर बने उस मकान में
जो धूप की अँगूठी में चमकता हुआ
भावुकता के बग़ैर भी बदतर था
किसी भी यतीमख़ाने से
हक़ीक़त में वह फाँसी-घर था
जल्लादों के बिना
वह यातना-शिविर था
बिना किसी तानाशाह की तस्वीर के
देश का सबसे छोटा नक़्शा
पंद्रह थे गिनती में इस वक़्त फ़क़त
और पंद्रह की आँखों में
पंद्रह शताब्दियों का भय था
सत्रह से कम की उमर के भीतर
उनकी देह पर
सत्रह सालों के ख़ौफ़नाक हमले थे
पंद्रह घरों से नहीं आए थे ये
माँ, बाप, भाई, बहन से बिछुड़कर
या छोड़कर
अपना स्कूल गेंद बस्ता अलबम डाक-टिकट का
या छिपाकर किताबों के बीच अपनी टॉफ़ी अधखाई
चाॅकलेट, पन्नी, तस्वीरें
किसी ख़रगोश या हाथी हिरन की
पंद्रह झुग्गियों के लावारिस अँधेरे
और गटरों-गलियों के बदबू मारते भभके से
निकलकर आए थे ये गंदे शब्दों के
सचित्र संविधान की बस्ती से
पंद्रह घुड़सवार या जासूसों की
तरह नहीं होंगे ये
न पंद्रह डाकुओं का गिरोह
छिपा इस वक़्त इनकी मुट्ठियों में
ये नहीं सोचते अभी
मताई या बाप के बारे में
इनके दिमाग़ में है क़ानून के कुछ अटपटे शब्द
कड़क आवाज़ें
ख़ाकी आँखों से झाँकती ख़ौफ़ की छायाएँ
अभी झिझकते बताते अपना
या बाप का नाम
बताएँगे एक दिन अदालत में सब कुछ
कैसे सेंध लगाई होगी इनने
गेहूँ या मक्के के ख़ज़ाने में
कैसे ग़ायब किया होगा कोई जूता
या ट्रांज़िस्टर नवाबों के बाड़े से
बड़े-बड़े हत्यारे पढ़ेंगे
इनको दी गई सज़ा की ख़बर
कोड़ों की आवाज़ सुनाई नहीं देगी
डाकुओं की दुनिया में
चाँदी की वर्षगाँठ मनाते हुए अपने जूतों की
सुनते रहेंगे सब शहनाई
और बच्चों के जेलख़ाने की खिड़की को
आँखों में सुलगाकर
फूलों के सपनों के हत्यारों की दुनिया में
मैं भी जलता रहूँगा
एक छोटी-सी मोमबत्ती की तरह
अपनी आत्मा का चोर।
- पुस्तक : जहाँ थोड़ा-सा सूर्योदय होगा (पृष्ठ 116)
- रचनाकार : चंद्रकांत देवताले
- प्रकाशन : संवाद प्रकाशन
- संस्करण : 2008
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