Font by Mehr Nastaliq Web

यदि दर्द न होता

yadi dard na hota

रमानाथ अवस्थी

रमानाथ अवस्थी

यदि दर्द न होता

रमानाथ अवस्थी

दुनिया बे-पहचानी ही रह जाती

यदि दर्द होता मेरे जीवन में

मैं देख रहा हूँ काफ़ी अरसे से

दुनिया के रंग-बिरंगे आँगन को

जिसमें हर एक ढूँढ़ता फिरता है

केवल अपने-अपने मनभावन को

लेकिन मैं देख पाता ख़ुद को भी

यदि विश्व हँसता मेरे क्रंदन में

मन को निर्मल रखने के लालच में

जो कुछ कहना पड़ता है, कहता हूँ

पीड़ा को गीत बनाने के ख़ातिर

जो कुछ सहना पड़ता है, सहता हूँ

मेरी पीड़ा अनजानी ही रहती

यदि अश्रु जन्मे होते लोचन में

मुझको भय लगता है उन लोगों से

जो मौसम की ही भाँति बदलते हैं

प्यारे लगते हैं लेकिन वे इंसान

जो हर मुश्किल के लिए सँभलते हैं

नफ़रत है केवल उन इंसानों से

जो शूल बने बैठे हैं मधुवन में

सुख की शीतल छाया को पाकर भी

मैं दुख की जलती धूप नहीं भूला

चंदा की उजली चाँदनियाँ पाकर

काली रातों का रूप नहीं भूला

मैं रातों को भी दिन-सा चमकाता

यदि मेरी आयु होती बंधन में।

स्रोत :
  • पुस्तक : आख़िर यह मौसम भी आया (पृष्ठ 34)
  • रचनाकार : रमानाथ अवस्थी
  • प्रकाशन : राजपाल
  • संस्करण : 1998

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY