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नए गीत

ne geet

जय चक्रवर्ती

और अधिकजय चक्रवर्ती

    अपने-अपने गढ़ हैं सबके अपने-अपने मठ हैं

    नए गीत के पंडों के अपने-अपने जमघट हैं।

    नए-नए प्रतिमान सभी के

    नई-नई व्याख्याएँ

    नए गीत की नई-नई हैं

    सबकी परिभाषाएँ

    नए-नए नामों के फतवे

    नए-नए आंदोलन—

    समझ आए किसको छोड़ें

    और किसे अपनाएँ।

    बेचारे इस नए गीत पर रोज़ नए संकट हैं!

    सबको कालजयी होना

    इतिहास पुरुष बनना है

    सबको अपने माथे ख़ुद ही

    राजतिलक करना है

    नए गीत से 'गीत' शब्द की

    छील-छीलकर चमड़ी—

    नए गीत का 'हिमगिरि' होने

    का सबका सपना है।

    नए गीत के दरवाज़े सब फेंक रहे तलछट हैं.

    क़दम-क़दम पर निजी स्वार्थ की

    ओढ़े हुए मलिनता

    अपनी-अपनी फेंक रहे सब

    किसे गीत की चिंता!

    नए गीत के मठाधीश ये,

    न्यायाधीश यही हैं—

    रचना से विमर्श तक जिनको

    कहीं कोई गिनता।

    सच्चे साधक के सर पर अब चढ़े हुए लंपट हैं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : जय चक्रवर्ती
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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