सर्वदा सुखमय है संसार,
प्रेम है जीवन का आधार।
नयन से नयन महा छविमान,
अधर से अधर सुधा-रस-खान,
हृदय से हृदय प्रमोद-निधान,
प्राण से प्राण विभुग्ध महान,
यही कहते हैं बारंबार,
प्रेम है जीवन का आधार।
रवि-मुखी उषा अनंत-सुहाग,
शशि-मुखी संध्या शुचि-अनुराग,
प्रफुल्लित-शतदल-वदन तड़ाग,
भव्यता से भूषित भू-भाग,
कर रहे नित्य पुकार-पुकार,
प्रेम है जीवन का आधार,
ललित लतिकाओं से पवमान,
पादपों से वल्लरी-वितान,
कलित कलियों से अलि-गुण-गान,
विहंगम से विहगी का मान,
बता देते हैं सभी प्रकार,
प्रेम है जीवन का आधार।
वारिधर से चपला का प्यार,
सिंधु से सरिता का व्यवहार,
चंद्र से रजनी का अबिसार,
वायु से लत-अंग-व्यापार,
प्रकट करते हैं यही विचार,
प्रेम है जीवन का आधार।
लोक-लोचन का दिव्य प्रकाश,
मनुज-जीवन का विमल विकास,
चिरस्थायी उर का उल्लास,
विश्वपति का अनंत आभास,
जगत के यौवन का उपहार,
प्रेम है जीवन का आधार।
मनोहर सुरपुर का आख्यान,
गगन में सूर्य-चंद्र-आह्वान,
मही की सुषमा का सम्मान,
विश्व को अमरों का वरदान,
कवि-जनों का पवित्र उद्गार,
प्रेम है जीवन का आधार।
- पुस्तक : कादम्बिनी (पृष्ठ 20)
- रचनाकार : गोपालशरण सिंह
- प्रकाशन : इंडियन प्रेस, लिमिटेड, प्रयाग
- संस्करण : 1937
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