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पेड़ की बात

peD ki baat

जगदीशचंद्र बसु

जगदीशचंद्र बसु

पेड़ की बात

जगदीशचंद्र बसु

और अधिकजगदीशचंद्र बसु

    नोट

    प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा छठी के पाठ्यक्रम में शामिल है।

     

    क्या आपने कभी कोई बीज बोया है? बीज से पेड़ बनने की कहानी बहुत रोचक है। कैसे अंकुर फूटता है, पौधा बनता है, धीरे-धीरे बढ़ता है और बड़ा पेड़ बन जाता है। आइए जानते हैं पेड़ की बात...

    हिंदवी

    बहुत दिनों तक मिट्टी के नीचे बीज पड़े रहे। इसी तरह महीना-दर-महीना बीतता गया। सर्दियों के बाद वसंत आया। उसके बाद वर्षा की शुरूआत में दो-एक दिन पानी बरसा। अब और छिपे रहने की आवश्यकता नहीं थी! मानों बाहर से कोई शिशु को पुकार रहा हो, ‘और सोए मत रहो, ऊपर उठ जाओ, सूरज की रोशनी देखो।’ आहिस्ता आहिस्ता बीज का ढक्कन दरक गया, दो सुकोमल पत्तियों के बीच अंकुर बाहर निकला। अंकुर का एक अंश नीचे माटी में मज़बूती से गड़ गया और दूसरा अंश माटी भेदकर ऊपर की ओर उठा। क्या तुमने अंकुर को उठते देखा है? जैसे कोई शिशु अपना नन्हा-सा सिर उठाकर आश्चर्य से नई दुनिया को देख रहा है!

    वृक्ष का अंकुर निकलने पर जो अंश माटी के भीतर प्रवेश करता है, उसका नाम जड़ है और जो अंश ऊपर की ओर बढ़ता है, उसे तना कहते हैं। सभी पेड़-पौधों में 'जड़ व तना' ये दो भाग मिलेंगे। यह एक आश्चर्य की बात है कि पेड़-पौधों को जिस तरह ही रखो, जड़ नीचे की ओर जाएगी व तना ऊपर की ओर उठेगा। एक गमले में पौधा था। परीक्षण करने के लिए कुछ दिन गमले को औंधा लटकाए रखा। 

    पौधे का सिर नीचे की तरफ़ लटका रहा और जड़ ऊपर की ओर रही। दो-एक दिन बाद क्या देखता हूँ कि जैसे पौधे को भी सब भेद मालूम हो गया हो। उसकी सब पत्तियाँ और डालियाँ टेढ़ी होकर ऊपर की तरफ़ उठ आईं तथा जड़ घूमकर नीचे की ओर लटक गई। तुमने कई बार सर्दियों में मूली काटकर बोई होगी। देखा होगा, पहले पत्ते व फूल नीचे की ओर रहे। कुछ दिन बाद देखोगे कि पत्ते और फूल ऊपर की ओर उठ आए हैं।

    हम जिस तरह भोजन करते हैं, पेड़-पौधे भी उसी तरह भोजन करते हैं। हमारे दाँत हैं, कठोर चीज़ खा सकते हैं। नन्हें बच्चों के दाँत नहीं होते वे केवल दूध पी सकते हैं। पेड़-पौधों के भी दाँत नहीं होते, इसलिए वे केवल तरल द्रव्य या वायु से भोजन ग्रहण करते हैं। पेड़-पौधे जड़ के द्वारा माटी से रस-पान करते हैं। चीनी में पानी डालने पर चीनी गल जाती है। माटी में पानी डालने पर उसके भीतर बहुत-से द्रव्य गल जाते हैं। पेड़-पौधे वे ही तमाम द्रव्य सोखते हैं। जड़ों को पानी न मिलने पर पेड़ का भोजन बंद हो जाता है, पेड़ मर जाता है।

    सूक्ष्मदर्शी से अत्यंत सूक्ष्म पदार्थ स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं। पेड़ की डाल अथवा जड़ का इस यंत्र द्वारा परीक्षण करके देखा जा सकता है कि पेड़ में हज़ारों-हज़ार नल हैं। इन्हीं सब नलों के द्वारा माटी से पेड़ के शरीर में रस का संचार होता है।

    इसके अलावा वृक्ष के पत्ते हवा से आहार ग्रहण करते हैं। पत्तों में अनगिनत छोटे-छोटे मुँह होते हैं। सूक्ष्मदर्शी के ज़रिए अनगिनत मुँह पर अनगिनत होंठ देखे जा सकते हैं। जब आहार करने की ज़रूरत न हो तब दोनों होंठ बंद हो जाते हैं। जब हम श्वास-प्रश्वास ग्रहण करते हैं तब प्रश्वास के साथ एक प्रकार की विषाक्त वायु बाहर निकलती है, उसे ‘अंगारक’ वायु कहते हैं। अगर यह ज़हरीली हवा पृथ्वी पर इकट्ठी होती रहे तो तमाम जीव-जंतु कुछ ही दिनों में उसका सेवन करके नष्ट हो सकते हैं। ज़रा विधाता की करुणा का चमत्कार तो देखो, जो जीव-जंतुओं के लिए ज़हर है, पेड़-पौधे उसी का सेवन करके उसे पूर्णतया शुद्ध कर देते हैं। पेड़ के पत्तों पर जब सूर्य का प्रकाश पड़ता है, तब पत्ते सूर्य-ऊर्जा के सहारे ‘अंगारक’ वायु से अंगार निःशेष कर डालते हैं। और यही अंगार वृक्ष के शरीर में प्रवेश करके उसका संवर्द्धन करते हैं। पेड़-पौधे प्रकाश चाहते हैं। प्रकाश न मिलने पर ये बच नहीं सकते। पेड़-पौधों की सर्वाधिक कोशिश यही रहती है कि किसी तरह उन्हें थोड़ा-सा प्रकाश मिल जाए। यदि खिड़की के पास गमले में पौधा रखो, तब देखोगे कि सारी पत्तियाँ व डालियाँ अंधकार से बचकर प्रकाश की ओर बढ़ रही हैं। वन-अरण्य में जाने पर पता लगेगा कि तमाम पेड़-पौधे इस होड़ में सचेष्ट हैं कि कौन जल्दी से सिर उठाकर पहले प्रकाश को झपट ले। बेल-लताएँ छाया में पड़ी रहने से, प्रकाश के अभाव में मर जाएँगी। इसलिए वे पेड़ों से लिपटती हुई, निरंतर ऊपर की ओर अग्रसर होती रहती हैं।

    हिंदवी

    अब तो समझ गए होंगे कि प्रकाश ही जीवन का मूलमंत्र है। सूर्य-किरण का स्पर्श पाकर ही पेड़ पल्लवित होता है। पेड़-पौधों के रेशे-रेशे में सूरज की किरणें आबद्ध हैं। ईंधन को जलाने पर जो प्रकाश व ताप बाहर प्रकट होता है, वह सूर्य की ही ऊर्जा है। पेड़-पौधे व समस्त हरियाली प्रकाश हथियाने के जाल हैं। पशु-डाँगर, पेड़-पौधे या हरियाली खाकर अपने प्राणों का निर्वाह करते हैं। पेड़-पौधों में जो सूर्य का प्रकाश समाहित है वह इसी तरह जंतुओं के शरीर में प्रवेश करता है। अनाज व सब्ज़ी न खाने पर हम भी बच नहीं सकते हैं। सोचकर देखा जाए तो हम भी प्रकाश की ख़ुराक पाने पर ही जीवित हैं।

    कोई-कोई पेड़ एक वर्ष के बाद ही मर जाते हैं। सब पेड़ मरने से पहले संतान छोड़ जाने के लिए व्यग्र हैं। बीज ही उनकी संतान है। बीज की सुरक्षा व सार-सँभाल के लिए पेड़ फूल की पंखुड़ियों से घिरा एक छोटा-सा घर तैयार करता है। फूलों से आच्छादित होने पर पेड़ कितना सुंदर दिखलाई पड़ता है। जैसे फूल-फूल के बहाने वह स्वयं हँस रहा हो। फूल की तरह सुंदर चीज़ और क्या है? जरा सोचो तो, पेड़-पौधे तो मटमैली माटी से आहार व विषाक्त वायु से अंगारक ग्रहण करते हैं, फिर इस अपरूप उपादान से किस तरह ऐसे सुंदर फूल खिलते हैं। तुमने कथा तो सुनी होगी—स्पर्शमणि की अर्थात पारस पत्थर की, जिसके स्पर्श से लोहा सोना हो जाता है। मेरे विचार से माँ की ममता ही वह मणि है। संतान पर स्नेह न्योछावर होते ही फूल खिलखिला उठते हैं। ममता का स्पर्श पाते ही मानो माटी व अंगार के फूल बन जाते हैं।

    पेड़ों पर मुस्कुराते फूल देखकर हमें कितनी ख़ुशी होती है! शायद पेड़ भी कम प्रफुल्लित नहीं होते! ख़ुशी के मौक़े पर हम अपने परिजनों को निमंत्रित करते हैं। उसी प्रकार फूलों की बहार छाने पर पेड़-पौधे भी अपने बंधु-बांधवों को बुलाते हैं। स्नेहसिक्त वाणी में पुकार सकते हैं, “कहाँ हो मेरे बंधु, मेरे बांधव, आज मेरे घर आओ। यदि रास्ता भटक जाओ, कहीं घर पहचान नहीं सको, इसलिए रंग-बिरंगे फूलों के निशान लगा रखे हैं। ये रंगीन पंखुड़ियाँ दूर से देख सकोगे।” मधुमक्खी व तितली के साथ वृक्ष की चिरकाल से घनिष्ठता है। वे दल-बल सहित फूल देखने आती हैं। कुछ पतंगे दिन के समय पक्षियों के डर से बाहर नहीं निकल सकते। पक्षी उन्हें देखते ही खा जाते हैं, इसलिए रात का अँधेरा घिरने तक वे छिपे रहते हैं। शाम होते ही उन्हें बुलाने की ख़ातिर फूल चारों तरफ़ सुगंध-ही-सुगंध फैला देते हैं।

    वृक्ष अपने फूलों में शहद का संचय करके रखते हैं। मधु-मक्खी व तितली बड़े चाव से मधुपान करती हैं। मधु-मक्खी के आगमन से वृक्ष का भी उपकार होता है। तुम लोगों ने फूल में पराग-कण देखे होंगे। मधुमक्खियाँ एक फूल के पराग-कण दूसरे फूल पर ले जाती हैं। पराग-कण के बिना बीज पक नहीं सकता। 

    इस प्रकार फूल में बीज फलता है। अपने शरीर का रस पिलाकर वृक्ष बीजों का पोषण करता है। अब अपनी ज़िंदगी के लिए उसे मोह-माया का लोभ नहीं है। तिल-तिल कर संतान की ख़ातिर सब-कुछ लुटा देता है। जो शरीर कुछ दिन पहले हरा-भरा था, अब वह बिल्कुल सूख गया है। अपने ही शरीर का भार उठाने की शक्ति क्षीण हो चली है। पहले हवा बयार करती हुई आगे बढ़ जाती थी। पत्ते हवा के संग क्रीड़ा करते थे।

    छोटी-छोटी डालियाँ ताल-ताल पर नाच उठती थीं। अब सूखा पेड़ हवा का आघात सहन नहीं कर सकता। हवा का बस एक थपेड़ा लगते ही वह थर-थर काँपने लगता है। एक-एक करके सभी डालियाँ टूट पड़ती हैं। अंत में एक दिन अकस्मात पेड़ जड़ सहित भूमि पर गिर पड़ता है।

    इस तरह संतान के लिए अपना जीवन न्योछावर करके वृक्ष समाप्त हो जाता है।

    हिंदवी

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    जगदीशचंद्र बसु

    जगदीशचंद्र बसु

    स्रोत :
    • पुस्तक : मल्हार (पृष्ठ 145)
    • रचनाकार : जगदीशचंद्र बसु
    • प्रकाशन : एनसीईआरटी
    • संस्करण : 2022
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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