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कनक कामिनी देखि के

kanak kaamini dekhi ke

कबीर

कबीर

कनक कामिनी देखि के

कबीर

और अधिककबीर

    कनक कामिनी देखि के, तू मत भूल सुरंग।

    मिलन बिछुरन दुहेलरा, जस केंचुलि तजत भुवंग॥

    हे ज्ञानस्वरूप जीव! धन-ऐश्वर्य और स्त्री-पुत्रादि की चमक-दमक देखकर तू मत भूल! सांप के शरीर में केंचुली आने और उसके जाने-दोनों में जैसे उसे कष्ट होता है, वैसे माया के प्राप्त करने तथा उसके बिछुड़ने-दोनों में जीव को कष्ट होता है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीजक: पारख प्रबोधिनी व्याख्या (पृष्ठ 595)
    • संपादक : अभिलाष दास
    • रचनाकार : कबीर
    • प्रकाशन : कबीर पारख संस्थान
    • संस्करण : 1969

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