उनकी ऊँचाई, मेरी जिज्ञासाओं और शंकाओं से ऊपर है
राजेंद्र यादव 28 नवम्बर 2023
संकेत-सूत्र
कविताएँ इधर लगभग नहीं ही लिखीं। अनुभूति-क्षणों के आकलन और अभिव्यक्ति की प्रक्रिया शायद कुछ और राहों की ओर मुड़ पड़ी हो, शायद अधिक व्यापक और प्रभविष्णु धरातलों को खोज रही हो। खोज की सफलता या सार्थकता का आश्वासन अभी से कैसे—और क्यों—दिया जाए?
किशोर-गीतों से लेकर नवीनतम कविताओं तक की यात्रा का विस्तार बारह-तेरह वर्ष है। सारा लेखन इसी अवधि में बिखरा है। छूटे हुए पड़ावों और घुमावों को मुड़कर देखना किसे बुरा लगता है?
‘नई कविता’ की संज्ञा शायद ये न पाएँ। शास्त्रीय ‘अकृष्ट-पच्य’ दुरूहता अर्थात् एकांतिक और वैयक्तिक राग-बोध जिन शास्ताओं के पास सुरक्षित है, रहे। उनकी ऊँचाई, मेरी जिज्ञासाओं और शंकाओं से ऊपर है; लेकिन आदेशित बिम्बों और उससे भी अधिक आयातित शब्दानुवादों का आग्रह इन कविताओं में कहीं नहीं है—इसलिए और भी।
— राजेंद्र यादव
5 ए ग्रीक चर्च रो,
कलकत्ता-26
28 अगस्त 1960
यहाँ प्रस्तुत कथ्य राजेंद्र यादव के एक और एकमात्र कविता-संग्रह ‘आवाज़ तेरी है’ (भारतीय ज्ञानपीठ, काशी; प्रथम संस्करण : 1960) की भूमिका के रूप में पूर्व-प्रकाशित है और यहाँ वहीं से साभार है।
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