Font by Mehr Nastaliq Web
अक्टूबर हर पेड़ का सपना है

अक्टूबर हर पेड़ का सपना है

सौरभ अनंत 11 अक्तूबर 2023

वह चलते हुए अपने पाँव सड़क पर पड़ी सूखी पत्तियों से बचा-बचा कर रख रही थी। यूँ चलते हुए उसका ध्यान थोड़ा मेरी बातों में था, थोड़ा सूखी पत्तियों में और थोड़ा आसमान में सूखते पेड़ों के बीच से झाँकते चाँद में। उसने कहा : “देखो आज का चाँद देखो, लग रहा है जैसे पेड़ पर कोई पारिजात का फूल खिल आया है।”

मैंने जब ऊपर देखा तो मेरा मन सूखे पेड़ में ही अटका रह गया। जैसे अचानक ऊपर उड़ने को उठी पतंग कई बार पेड़ में अटक जाती है। और फिर उड़ना छोड़ कई-कई दिन वहीं उस सूखी डाल पर अटकी रहती है।

मुझे याद है उस दिन के बाद मेरा मन भी कई-कई दिन उस सूखे पेड़ पर अटका रहा था।

हवाएँ ज़ोर से चलती थीं तो मन भी ज़ोर से फड़फड़ाता था। पर पेड़ से छूटता नहीं था।

वह पतझड़ का मौसम था। सारी पत्तियों ने उस पेड़ का साथ छोड़ दिया था। मुझे लगा मेरा मन उस पेड़ पर लगी कोई ताज़ा हरे रंग की पत्ती है, जिसके साथ का सपना पेड़ हर अक्टूबर में देखता है।

“पेड़ आपस में बात करते हैं।”—

उस दिन अचानक उसने अपनी कोई दूसरी ही बात को अधूरा छोड़ते हुए कहा। फिर बोली : “तुम तो ये बात जानते हो न?” मैंने कोई जवाब नहीं सोचा… बल्कि उस वक़्त मेरे मन को लगा कि मानो हम दोनों कोई पेड़ हैं—बरसों पुराने, जो सदियों से साथ खड़े बस आपस में बातें किए जा रहे हैं।

“वो क्या बातें करते होंगे?” ये सवाल मेरे मन में नहीं आया। असल में मुझे कभी लगा ही नहीं कि किसी से जुड़ जाने के बाद साथ निभाते हुए बातें भी करने की ज़रूरत पड़ सकती है। मुझे हमेशा ही लगा है कि जैसे ‘साथ’ अपने आप में ही कोई गहरी बात है।

जानती हो ये मैंने पेड़ों से ही सीखा है। बचपन से अब तक न जाने कितने पेड़ों को बरसों से एक-दूसरे के साथ खड़ा देखा है—शांत, चुप, मौन—साथ—बरसों-बरस, सारे मौसम, सारा जीवन। मुझे लगता है कि मेरे पास ‘साथ’ की इससे बेहतर कोई और परिभाषा नहीं है।

“अक्टूबर में पत्तियाँ साथ क्यूँ छोड़ देती हैं तुम्हारा?” उसने मुस्कुराते हुए पेड़ से कहा और अपनी हथेली पेड़ के तने पर रखकर ध्यान से पेड़ को देखती रही। फिर बोली : “देखो आज का चाँद देखो, लग रहा है कि जैसे पेड़ पर कोई पारिजात का फूल खिल आया है।” मैंने जब ऊपर देखा तो मेरा मन पारिजात में ही अटका रह गया। जैसे अचानक ऊपर उड़ने को उठी पतंग कई बार पेड़ में अटक जाती है। और फिर उड़ना छोड़ कई-कई दिन वहीं उस सूखी डाल पर अटकी रहती है।

नए ब्लॉग

जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

टिकट ख़रीदिए