मुझमें न भगवान् का प्रेम है, न श्रवणादि भक्ति है, न वैष्णवों का योग है, न ज्ञान है, न शुभ कर्म है, और कितने आश्चर्य की बात है कि उत्तम गति भी नहीं है, फिर भी हे भगवान्! हीन अर्थ को भी उत्तम बना देने वाले आपके विषय में आबद्धमूला मेरी आशा ही मुझको प्रयत्नशील बनाए रहती है।