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कृष्ण को बीरी देत ब्रजनारी
कृष्ण को बीरी देत ब्रजनारी।पान सुपारी काथो गुलाबी लोंगन कील समारी॥
परमानंद दास
भोजन को जेमत राम कृष्ण
भोजन को जेमत राम कृष्ण दोऊ भैया जननी जसोदा जीमावेरी।खारे खाटे मीठे बिंजन स्वाद अधिक उपजाबे री॥
परमानंद दास
कृष्ण नाम जब तैं प्रवन सुन्यौ री आली
कृष्ण नाम जब तैं प्रवन सुन्यौ री आली,भूली री भवन हौं तो बावरी भई री।
नंददास
कृष्ण जन्म
जसुमति सुत प्रगट्यौ सुनि, फूले ब्रजराज हो।बड़े भाग खुले, करन आये सुर-काज हो॥
गोस्वामी हरिराय
होरी होरी कहि बोले सब ब्रज की नारि
होरी होरी कहि बोले सब ब्रज की नारि।नन्द गाँव बरसानो हिलि मिलि गावत इत उत रस की गारि
रसिकबिहारी
राधा निसि हरि के संग जागी
राधा निसि हरि के संग जागी।जमुना पुलिन सघन कुंजनि में, पिय अंग-अंग मिलि कै अनुरागी॥
छीतस्वामी
हरि के दास कहावत हो
हरि के दास कहावत हो, मन में कौतुकी आस।राम-नाम को परगट बेचे, करत भक्ति को नास॥
निपट निरंजन
हरि, तेरी लीला की सुधि आवै
हरि, तेरी लीला की सुधि आवै।कमल नैन मन-मोहनि मूरति, मन-मन चित्र बनावै॥
परमानंद दास
पौढ़े हरि राधिका के भवन
सुन के कान शीतल भई छतियाँ विरह दुख के दवन।दास कुंभन धर्यो ललिता नाम राधारवन॥
कुंभनदास
या हरि को संदेस न आयौ
राग मल्हार सह्यौ नहिं जाई काहू पंथी कहि गायौ।परमानंददास कहा कीजै अब कृष्न मधुपुरी छायौ॥
परमानंद दास
मैं तो खेलूं प्रभु के संग
मैं तो खेलूं प्रभु के संग होरी रंगभरी।जित देखूं तित रम रहौ रे सबमें व्यापक है हरी॥
सहजोबाई
हरि-दासन के निकट न आवत
हरि-दासन के निकट न आवत प्रेत पितर जमदूत।जोगी भोगी संन्यासी अरु पंडित मुंडित धूत॥
हरीराम व्यास
चंदन की खोर कीये
प्यारी के पिया को नेम पिय के प्यारी सो प्रेम अरस परसरीझ रीझावे जेठ की दूपेरी में।