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खेलत गिरिधर रंग मंगे रंग
खेलत गिरिधर रंग मंगे रंग।गोप सखा बनि बिन आये हैं हरि हल धर के संग॥
परमानंद दास
रंग महल दोउ राजत रंग रसीले
रंग महल दोउ राजत रंग रसीले।लावन लंक अंकन की सानिधि भुज अंसनि गुन सीले॥
कृपानिवास
कुंज पधारो रंग-भरी रैन
कुंज पधारो रंग-भरी रैन।रंग भरी दुलहिन रँग भरे पिया श्याम सुंदर सुख दैन।
रसिकबिहारी
देखो भाई रंग भरे पिया
देखो भाई रंग भरे पिया सोहत रंग भरी सिया अंगबाम।रंग भरी बतियाँ रिया रंगीली नरबर रंग कोटिक रंग अभिराम॥
कृपानिवास
हेलो री रंग धाम रंगीले
कृपानिवास
अटपट रंग को बिरह सुनि
अटपट रंग को बिरह सुनि, भूलि रहे सब कोइ।जल पीवत हैं प्यास कों, प्यास भयौ जल सोइ॥
ध्रुवदास
लाल संग रास-रंग
लाल संग रास-रंग, लेत मान रसिक-रवंनि,ग्रग्रता ग्रग्रता तत तत तत, थेई थेई गति लीने।
छीतस्वामी
रंग नीक री फुही थोरी-थोरी
रंग नीक री फुही थोरी-थोरी।हरित भूमि तामें कंसूभी चीर सखी समूह ओढें बनि जोरी-जोरी।
चतुर्भुजदास
पौढ़े सुख सैन रैन रंग
पौढ़े सुख सैन रैन रंग महल मैं।सुरति सरोवर हंस हंसनी करत किलोल मद मदन गहल मैं॥
कृपानिवास
या अल्ला, मोमन तू
जिन तेरौ नाम लियौ, तिनकौ दु:ख गयौ, तू अध्यान पगा।‘तानसेन’ माँगै सुख-संपति-संतति, तानन रंग रंगा॥
तानसेन
गिरिधर लाल के रंग रांची
गिरिधर लाल के रंग रांची।तन सुधि भूलि गई मोकौं अब कहति हो तोसौ सांची॥
छीतस्वामी
वसंत-वर्णन (दो) : रामचरितमानस
तुलसीदास
आगे माई एहन उमत बर लाइल
आगे माई एहन उमत बर लाइल हिमगिरि देखि-देखि लगइछ रंग।एहन बर घोड़बो न चढ़इक जो घोड़ रंग-रंग जंग॥