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यह तन इक दिन होय जु छारा
यह तन इक दिन होय जु छारा।नाम, निशान न रहि है रंचहु भूलि जायगो सब संसारा।
जुगलप्रिया
चरन कमल बंदौं जगदीस
चरन कमल बंदौं जगदीस के जे गोधन संग धाये।जे पद कमल धूरि लपटाने कर गहि गोपिन उर लाये॥
परमानंद दास
दिन दिन होत कंचुकी गाढी
दिन दिन होत कंचुकी गाढी।सजल स्याम घन रति रस बरखत जोबन सरिता बाढ़ी॥
गोविंद स्वामी
जा दिन कन्हैया मोसों
जा दिन कन्हैया मोसों मैया कहि बोलैगो।तादिन अति आनंद गिनोंरी माई रुनक झुनक ब्रज गलिन में डोलेगो॥
परमानंद दास
किते दिन बिन बृन्दाबन खोये
किते दिन बिन बृन्दाबन खोये।योहीं वृषा गये ते अबलौ, राजस-रंग समोये॥
नागरीदास
अब दिन रात्रि पहार से भये
अब दिन रात्रि पहार से भये।तब ते निघटत नाहिनि जब ते हरि मधुपुरी गये।
कुंभनदास
केते दिन जु गये बिनु देखैं
केते दिन जु गये बिनु देखैं।तरुन किसोर रसिक नँद-नंदन, कछुक उठति मुख रेखैं॥
कुंभनदास
केते दिन भये रैनि सुख सोये
केते दिन भये रैनि सुख सोये।कछु न सुहाई गोपालहि बिछुरे रहे पूंजी सो खोये॥
परमानंद दास
जा दिन प्रीत श्याम सो कीनी
जा दिन प्रीत श्याम सो कीनी।ता दिनतें मेरी अंखियन में नेकहूं नींद न लीनी॥
परमानंद दास
भोगी के दिन अभ्यंग स्नान करि
स्त्री धन स्याम मनोहर मूरत करत बिहार नित ब्रज वृंदावन।परमानंददास को ठाकुर करत रंग निस दिन॥
परमानंद दास
प्रितयम एक बार गृह आऔ
भूलि जाउँ हों सबै परेखो, बीती ताहि बिसारों।भाग सराहों रतन आपनो, जो तव चरन निहारों॥
रत्नावली
लाल! तुम कैसे चराईं गाइ
लाल! तुम कैसे चराईं गाइ।ग्वालन संग छैया में बैठे, कौन विपिन में जाइ॥
गोस्वामी हरिराय
की हम साँझक एक सरि तारा
की हम साँझक एक सरि तारा भादव चौठिक ससी।इथि दुहु माझ कोन मोर आनन जे पहु हेरसि न हँसी॥
विद्यापति
ठाडी एक बात सुनि धीरी
ठाडी एक बात सुनि धीरी।भोर हितें कहा मटुकी लियें डोलति ब्रज-वासिनी अहीरी॥