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श्री यमुना वंदना
अडौ खडौ द्वार पै निबारियै श्री यमुने‘प्रीतम’ मनोरथन पूरन करन बेगि
यमुना प्रसाद चतुर्वेदी
यह मेरे लाल कौ अनप्रासन
पायस भरि कर पल्लव लैहों सब गुरुजन अनुसासन।परमानंद अभिलाख जसोदा बेगि बढ़ै खटमासन॥
परमानंद दास
केकी कीर कोकिला कोयल
मूंदौ रंध्र, बेगि प्राची दिसि, इति अब कहत पुकार।‘ललितकिसोरी' निरख्यौ चाहत रबि नव कुंज-बिहार॥
ललितकिशोरी
कहा-कहा नहिं सहत सरीर
चेतहु भैया, बेगि बढ़ी, कलि-काल-नदी गंभीर।‘व्यास’ वचन बलि वृंदावन बसि, सेवहु कुंज कुटीर॥
हरीराम व्यास
हरि हौं सब पतितनि को नायक
बहुत भरोसौ जानि तुम्हारौ, अध कीन्हें भरि भाँड़ौ।लीजै बेगि निबेरि तुरतहीं सूर पतित कौ टाँड़ौं॥
सूरदास
आयो घोष बड़ो व्योपारी
ऊधो जाहु सबार यहाँ तें बेगि गहरु जनि लावौ।मुँह माँग्यो पैहो सूरज प्रभु साहुहि आनि दिखावौ॥
सूरदास
कुंज के द्वार ठाढे हैं मोहन
कुंज के द्वार ठाढे हैं मोहन देखत हैं मारग तेरो री प्यारी—चलि बेगि विलम न कीजे।
गोविंद स्वामी
श्री सरस्वती वंदना
त्रास ना रहें ता सों सु तन में तनक कहूँ,ऐसी दुर्व्यसना ते बेगि ही बिरक्ति दै।
यमुना प्रसाद चतुर्वेदी
देवी वंदना
साधना तिहारी में जु बाधक बने हैं जेते,भौन ते निकारि बेगि उन हीं के दल कों।
यमुना प्रसाद चतुर्वेदी
भोजन कों बोलत महतारी
खीर सिरात स्वाद नहिं आवत बेगि ग्रास तुम लेहो मुरारी।चितवत चित नीकें करि जैवो पाछे कीजे केलि बिहारी॥
परमानंद दास
गोविंद चले चरावन धेनु
जसोमति पाक परोसि कहति सखि तूं ले जाउ बेगि इह देंन।'गोविंद' लिए बिरहनी दौरी तलफत जैसे जल बिनु मेंन॥