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जीवन की कला
इच्छा की तरह कला का प्रेम और प्रेम करने की कलायदि अभिन्न नहीं होते तो न तो प्रेमी को ही नींद
ऋतुराज
तानाशाह का कला-प्रेम
हिंसा और घृणा फैलाने के लिए।कला के भीतर कहाँ बचा रह जाता है वह अवकाश
सत्येंद्र कुमार
काला कैनवास तिरछी लकीरें
सिर्फ़ इतना कि वह काले को काला कहता है, ग्रे नहींऔर काले को काला कह देने लायक़ कोई भाषा नहीं बची
तुषार धवल
कला के हथियार
नहीं टिपाया जा सकताहर रंगीन अक्षर भी कला का हिस्सा नहीं हो सकता