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सब कहँ फूल बसत सुख
सब कहँ फूल बसत सुख, अगिन लूक सम सोहि।सकल सुजोग कुयोग भव, रामलला बिन तोहि॥
रामचरणदास
संग पाय कै बुधन के
संग पाय कै बुधन के, छिद्र निहारैं नीच।बिलहिं विलोकै भुजंग ज्यों, रंगभवन के बीच॥
दीनदयाल गिरि
ब्रजदेवी के प्रेम की
ब्रजदेवी के प्रेम की, बँधी धुजा अति दूरि।ब्रह्मादिक बांछत रहैं, तिनके पद की धूरि॥
ध्रुवदास
प्रिय-परिकर के सुघरजन
प्रिय-परिकर के सुघरजन, बिरही-प्रेम-निकेत।देखि कबै लपटायहों, उनतें हिय करिहेत॥
नागरीदास
शुतर गिरयो भहराय के
शुतर गिरयो भहराय के, जब भा पहुँच्यो काल।अल्प मृत्यु कूँ देखि के, जोगी भयो जमाल॥
जमाल
गर्व भुलाने देह के
गर्व भुलाने देह के, रचि-रचि बाँधे पाग।सो देही नित देखि के, चोंच सँवारे काग॥
मलूकदास
पद्मनाभ के नाभि की
पद्मनाभ के नाभि की, सुखमा सुठि सरसाय।निरखि भानुजा धार को, भ्रमि-भ्रमि भंवर भुलाय॥
रघुराजसिंह
अपने अँग के जानि कै
अपने अँग के जानि कै जोबन-नृपति प्रवीन।स्तन, मन, नैन, नितंब कौ बड़ौ इजाफा कीन॥
बिहारी
लोभ-लगे हरि-रूप के
लोभ-लगे हरि-रूप के, करी साँटि जुरि, जाइ।हौं इन बेची बीच हीं, लोइन बड़ी बलाइ॥