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संत दिवाली नित करें
संत दिवाली नित करें, सतलोक के माहिं।और मते सब काल के, योहिं धूल उड़ाहिं॥
संत शिवदयाल सिंह
सतगुरु संत दया करी
सतगुरु संत दया करी, भेद बताया गूढ़।अब सुन जीव न चेतई, तौ जानौ अतिमूढ़॥
संत शिवदयाल सिंह
संत दया सतगुरु मया
संत दया सतगुरु मया, पाया आद अनाद।गत मत कहते ना बने, सुरत भई विस्माद॥
संत शिवदयाल सिंह
संत मता सब से बड़ा
संत मता सब से बड़ा, यह निश्चय कर जान।सूफ़ी और वेदांती, दोनों नीचे मान॥
संत शिवदयाल सिंह
जिन सतगुरु के बचन की
जिन सतगुरु के बचन की, करी नहीं परतीत।नहि संगत करी संत की, वह रोवें सिर पीट॥
संत शिवदयाल सिंह
संत मुक्त के पौरिया
संत मुक्त के पौरिया, तिनसौं करिये प्यार।कूंची उनकै हाथ है, सुन्दर खोलहिं द्वार॥
सुंदरदास
‘तुलसी’ संत सुअंब तरु
‘तुलसी’ संत सुअंब तरु, फूलि फलहिं पर हेत।इतते ये पाहन हनत, उतते वे फल देत॥
तुलसीदास
सुंदर सबही संत मिलि
सुंदर सबही संत मिलि, सार लियो हरि नाम।तक्र तजी घृत काढि के, और क्रिया किहिं काम॥
सुंदरदास
संग दोष से संत जन
संग दोष से संत जन, अंत न होहिं मलान।जैसे जल मल संग तजि, निरमल होत निदान॥
दीनदयाल गिरि
कहे तुका तु सबदा बेचूं
कहे तुका तु सबदा बेचूं, लेवे केतन हार।मीठा साधु संत जन रे, मूरख के सिर मार॥
संत तुकाराम
संत दिवाली नित करें
सन्त दिवाली नित करें, सत्तलोक के माहिं।और मते सब काल के, यों ही धूल उड़ाहिं॥
संत शिवदयाल सिंह
ऐसो संत कोइ जानि है
ऐसो संत कोइ जानि है, सत्त सब्द सुनि लेह।केसो हरि सों मिलि रहो, नेवछावर करि देह॥