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नहिं मृगंक भू अंक यह
नहिं मृगंक भू अंक यह, नहिं कलंक रजनीस।तुव मुख लखि हारो कियो, घसि घसि कारो सीस॥
रसलीन
गुरु सखी बांधव भृत्य जन
गुरु सखी बांधव भृत्य जन, जथा जोग गुनि चित्त।रतन इनहिं सादर सदा, बरतहु वितरहु वित्त॥
रत्नावली
साधन करहिं अनेक विधि
साधन करहिं अनेक विधि, देहिं देह कौं दंड।सुन्दर मन भाग्यौ फिरै, सप्त दीप नौ खंड॥
सुंदरदास
किये सिंगार अनेक मैं
किये सिंगार अनेक मैं, नख सिख भूषन साजि।सुन्दर पिय रीझै नहीं, तौ सब कौंनैं काजि॥
सुंदरदास
लखि अनेक सुंदर सुमन
लखि अनेक सुंदर सुमन, मन न नेक पतियाइ।अमल कमल ही पै मधुप, फिरि-फिरि मँड़राइ॥
दुलारेलाल भार्गव
मृगी ज्यों सब ठगी नागरि
मृगी ज्यों सब ठगी नागरि, रहि विरह तन घेरि।मिलन चाहति लाल अंक, निसंक हारी हेरि॥
रसिक अली
हार पदिक कुंडल तिलक
हार पदिक कुंडल तिलक, कबहुँ अंक तन तीय।छिन-छिन बिनहि टरे रहत, आय सँवारत पीय॥
बाल अली
अलि ये उड़गन अगिनि कन
अलि ये उड़गन अगिनि कन,अंक धूम अवधारि।मानहु आवत दहन ससि, लै निज संग दवारि॥
बैरीसाल
रीझि चितै चित चकित ह्वै
रीझि चितै चित चकित ह्वै, रूप जलधि-सी बाल।वारत लाल तमाल दुति, अंक माल दै माल॥
बाल अली
नहिं कुरंग नहिं ससक यह
नहिं कुरंग नहिं ससक यह, नहिं कलंक नहिं पंक।बीस बिसे बिरहा दही, गड़ी दीठि ससि अंक॥