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दिल्ली
यह कैसी चाँदनी अमा के मलिन तमिस्र गगन में!कूक रही क्यों नियति व्यंग्य से इस गोधूलि-लगन में?
रामधारी सिंह दिनकर
अरुणोदय
(15 अगस्त, सन् 1947 को स्वतंत्रता के स्वागत में रचित)नई ज्योति से भीग रहा उदयाचल का आकाश,
रामधारी सिंह दिनकर
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रामधारी सिंह दिनकर: कविता और उनका व्यक्तित्व
मुझे गर्व है कि अपने देश में मैं सर्वप्रथम रहा हूँ, जिसने छठे दशक में दिनकर
एवगेनी पित्रोविच चेलीशेव
प्रभाकर भास्कर दिनकर दिवाकर
तानसेन
राम-राम रटु राम-राम सुनु
राम-राम रटु राम-राम सुनु, मनुवाँ सुवा सलोना रे।तन हरियाले बदन सुलाले, बोल अमोल सुहौना रे।
दूलनदास
तैं राम-राम भजु राम रे
तैं राम-राम भजु राम रे, राम ग़रीब निवाज हो।राम कहे सुख पाइहो, सुफल होइ सब काज।
दूलनदास
राम कह्यौ सदन, कबीर राम-राम कह्यौ
राम कह्यौ सदन, कबीर राम-राम कह्यौ,राम रैदास कह्यौ परमपदु पायौ है।
छत्रसाल
हिंद महासागर में छोटा-सा हिंदुस्तान
यात्रा पर मैं दिल्ली से 15 जुलाई को, बंबई (मुंबई) से 16 जुलाई को और नैरोबी