जॉर्ज आरवेल के उद्धरण
यह भी सच है कि कोई कुछ पठनीय तब तक नहीं लिख सकता जब तक वह लगातार ख़ुद के व्यक्तित्व से ख़ुद को मुक्त न करता रहे। अच्छा गद्य एक खिड़की की तरह होता है।
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