मनोहर श्याम जोशी के उद्धरण
वे समझते हैं कि किताबें इस तरह समझनी होती हैं कि अनंतर परीक्षक के समक्ष प्रमाणित किया जा सके कि हम इन्हें वैसा ही समझ गए हैं जैसा कि आप और आपके परीक्षक समझे थे। वह उस स्थिति से अनभिज्ञ हैं जिसमें पढ़नेवाला उतना समझ लेता है, जितना उसे समझना होता है।
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