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धर्मवीर भारती के उद्धरण

वस्तुतः यह सारा जीवन रसमय अनुभूतियों की सार्थक शृंखला न होकर—असंबद्ध क्षणों की भँवर है, जिसकी कोई दिशा नहीं।