मनोहर श्याम जोशी के उद्धरण
प्रेम में जो भी तुम उसे लिखते हो, ख़ुद अपने को लिखते हो। डायरी भरते हो तुम और क्योंकि वह तुमसे अभिन्न है इसलिए उसे भी पढ़ने देते हो।
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