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मनोहर श्याम जोशी के उद्धरण

नियति लिखती है हमारी पहली कविता और जीवन-भर हम उसका ही संशोधन किए जाते हैं। और जिस बेला सदा के लिए बंद करते हैं आँखें, उस बेला परिशोधित नहीं, वही अनगढ़ कविता नाच रही होती है हमारे स्नायुपथों पर।