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जयशंकर प्रसाद के उद्धरण

मुझे कलंक कालिमा के कारागार में बंद कर मर्म वाक्य के धुंएँ से दम घोंटकर मार डालने की आशा न करो। आज मेरी असहायता मुझे अमृत पिलाकर मेरा निर्लज्ज जीवन बढ़ाने के लिए तत्पर है।