मोहनदास करमचंद गांधी के उद्धरण
जीवमात्र ईश्वर के अवतार हैं, परंतु लौकिक भाषा में हम सबको अवतार नहीं कहते। जो पुरुष अपने युग में सबसे श्रेष्ठ धर्मवान् पुरुष होता है, उसे भविष्य की प्रजा अवतार के रूप में पूजती है। इसमें मुझे कोई दोष नहीं मालूम होता।
-
संबंधित विषय : मनुष्य