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कृष्ण बलदेव वैद के उद्धरण

डायरी में भी सब कुछ दर्ज नहीं किया जाता। उस डायरी में भी नहीं जो छपवाई नहीं जानी है। मतलब यह कि ख़ुफ़िया डायरी पर भी यह ख़ौफ़ हावी रहता है कि कोई मुझे पढ़ लेगा।

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