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धर्म खड़े ले हाथ ज़खीरे

dharm khaDe le haath zakhire

अनामिका सिंह

अनामिका सिंह

धर्म खड़े ले हाथ ज़खीरे

अनामिका सिंह

और अधिकअनामिका सिंह

    श्वेत कबूतर दड़बे में हैं,

    धर्म खड़े 

    ले हाथ ज़खीरे।

    बहुमत की मति पर है जाला

    उसमें ही 

    अटका-भटका है।

    खलनायक ने नायक बनकर

    लोकतंत्र 

    नख-शिख गटका है।

    जिन शाखों पर तय पुष्पन था 

    उन शाखों को 

    माली चीरे।

    अनाचार 

    की जड़ काटेंगी 

    उत्तरदाई थीं संज्ञाएँ 

    मचवे पकड़े सिंहासन के 

    वे यश की 

    कह रहीं कथाएँ।

    प्रतिरोधों के स्वर उठने थे 

    उन्हीं मुखों में 

    जमा दही रे।

    संवेदन को लकवा मारा,

    देकर थोथी चंट 

    दलीलें,

    हरियाली को सौंप पीलिया 

    जड़ी 

    ओस के पाँवों कीलें।

    मरघट सम 

    मातम जन-गण-मन

    राजा बाँधे शगुन कलीरे।

    रौंद रही

    सत्ता कृषकों को

    समाचार कहते बलवाई 

    इतने थेथर 

    इतने कुत्सित

    मनोरोग की खोज दवाई 

    करें प्रबल प्रतिकार मुखर हो

    पत्थर हैं मत समझें हीरे।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अनामिका सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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