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विषाद छंद

wishad chhand

अनुवाद : पृथ्वीनाथ मधुप

अर्जुन देव ‘मजबूर’

और अधिकअर्जुन देव ‘मजबूर’

    नीचे की ओर किए फुनगी

    मैंने देखा पेड़

    बहुत विश्वास भरे लहजे में बोला मुझसे

    आसमान में हैं जड़ें पसारी मैंने

    कि बहुत सराहते हैं जिसे वह—

    व्यवस्था सही हो जाए

    मैं घबराया, पूछा—

    यह अजब तमाशा क्या है

    कहा, दरगुज़र करो बात

    अगर सुन लेगा कोई

    करते बग़ावत हो

    अभी धर लिए जाओगे

    सच कहने पर कोई रोक नहीं

    मगर बाज़ार भाव बढ़ रहा

    बेज़मीरों का

    अब कुछ भी क़द्र नहीं मूल्यों की

    अन्याय पर नहीं रोक किसी की

    लीजिए मेरा नमस्कार

    करिए क्षमा मेरे अपराध

    हो जाएँगे विलुप्त अब वन

    अब कहा जाएगा राजहंस से

    धरती पर ही विचरण करो

    फूँके जाएँगे जज़्बात अंगारों पर

    पहन गले में साँप

    गुफाओं की ओर मानव क़दम बढ़ाएगा

    खट्टे हो जाएँगे दाँत सरलता के

    सज्जनता को दिखला देंगे अँगूठा ऐसा

    कि रोएगी बस रोएगी हा! हा

    कहा—

    कहा मैंने कि तुम हो विद्रोही

    दिन को दिन कहते हो

    रात को रात

    कहो तुम

    सूरज दो उगे

    बाहों में बाहें डाले हैं नाच रहे—

    दिन-रात

    अब तो पड़ जाएगा अकाल आषाढ़ में भी

    मुमकिन है कि माघ मास धान उगाए

    यह सब ओर मुनादी कर लो

    जल्दी-जल्दी

    कहा मैंने—

    सुनो आज धूप में है तीखापन

    कही सूख जाएँ नंगी जड़ें तेरी

    कहा मूर्ख हो तुम—

    पुरानी लीक पर चलते

    बनाना है हमें इस ज़मीं को ‘कर्बला’

    अब ज़रूरत क्या है जल की

    खाएँगें क्या कहा मैंने

    बिना जल भी जीवन संभव क्या

    कहा उसने मूर्ख हो तुम

    कि बौराया है सारा जग

    जल की अब ज़रूरत क्या

    खिलेंगे कमल आकाश में

    पानी मथ मक्खन निकाला जाएगा

    खिला देगा पदार्थ नाना कल्पतरू

    निर्लज्जता के वसन पहने

    सौंदर्य बिकेगा बाज़ारों में—

    बिकेंगी पगड़ियाँ बुद्धिमानों की

    अशिक्षितों में प्रमाण-पत्र बाँटें जाएँगें

    गाँव होंगे पदोन्नत शहरों में

    होगी खेतों में कारख़ानों की तैयारी

    मरुस्थल देंगे निर्देश झीलों को

    और वृद्धि होगी दुर्घटनाओं की

    प्रगति के प्रसाद बनाएँगे

    बदल जाएँगे अर्थ रुग्णता के

    और बेसुध हो हँसते रहेंगे लोग।

    (मूल शीर्षक : शहर आशोब)

    स्रोत :
    • पुस्तक : उजला राजमार्ग (पृष्ठ 54)
    • संपादक : रतनलाल शांत
    • रचनाकार : अर्जुन देव 'मजबूर'
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2005

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