अचानक से मुझे सारी जानकारियाँ
बेमानी-सी लगने लगी हैं,
सड़ांध, ऊब और बासीपन से भरी
लगने लगी हैं सारी ख़बरें,
ये ख़बरें या तो धमकी लगती हैं या झूठे सपने,
ये या तो डराती हैं अब
या लगती हैं सच को ढकने,
इन ख़बरों में बस ऐसी ही ख़बरें मिलती हैं,
जिनका वजूद मेरे वजूद के लिए
मायने नहीं रखता है।
चाँद पर पानी मिलने से
क्या बदल जाएगा?
मेरी प्यास मोहल्ले के नल में, अगर आया
तो वही पानी ही बुझा पाएगा,
रौशन हों भले ही और हज़ारों सूरज ब्रह्माँड में,
मेरे अँधेरे के हिस्से में तो ओ
एक अदद बल्ब का उजाला ही आ पाएगा,
क्या पता खेल में शामिल हो गई है राजनीति
या राजनीति में ही सारे खेल होते हैं,
क्या पता क्या पाने के लिए
लोग अपना ज़मीर खोते हैं।
विदेशी भाषाओं की हमारी जानकारी अब
विदेशियों तक को डराएगी,
तो क्या वह रिश्तों में फैलते
सन्नाटों को भी समझ पाएगी?
दुनिया ख़रीदेगी हमसे अब
तरक़्क़ी के साज़ोसामान
तब तो किसानों की लाशों का भी अब
पेड़ों से लटककर ही कर्ज़-मुक्ति पाना नहीं होगा अंजाम?
औरतें गाड़ देंगी अब कामयाबी के झँडे
नज़र नहीं आएंगे अब उनके जिस्म के
रौंदे, कुचले, मसले दुपट्टे।
ये ख़बरें ही बताती हैं कि आज
न बचपन या बुढ़ापा सुरक्षित है,
न बकरी तक की नस्लें,
धर्म गले नहीं काटेगा किसी के
देगा इंसानों की बगल में इंसान को बसने।
ऐसी ही जाने कितनी ख़बरों से
भरा पड़ा है ये अख़बार,
फिर भी मुझे लगने लगा है ये बेमानी-बेकार।
इसी में छपी बस एक जानकारी ही
मेरे कुछ पल्ले पड़ी है कि
अख़बार और पानी से साफ़ करने पर
आईने चमक जाते हैं।
किरदारों की बात करना तो
मेरे बस में ही नहीं है,
चलिए अख़बार से पाए इस टिप्स की बदौलत
मैं अपने घर के आईनों को ही चमका देती हूँ,
इन पर ज़मी हुई थोड़ी धूल हटा देती हूँ
और ख़ुश हो लूँगी कि
अब आईने पर धूल नज़र नहीं आएगी,
अख़बार और पानी के संयुक्त समाधान से
झूठी ख़बरों की सच्चाई कुछ और दिन छिपी रह जाएगी।
- रचनाकार : दामिनी यादव
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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