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स्लम्स में पतझड़

slams mein patjhaD

मलयज

मलयज

स्लम्स में पतझड़

मलयज

और अधिकमलयज

    डिकेंस के स्लम्स

    फटे मकानों की वर्दियाँ पहने

    बर्फ़ में नंगी एड़ियाँ ठोंक सेल्यूट मारते हैं,...

    खिड़की के चिटके मैले शीशे से झाँकता गंजा आदमी

    कूबड़ में युद्ध-उपन्यासों का बंडल बाँधे

    पिटी हुई गोटों को झोले में रख रहा है

    कि उन्हें मुँह-अँधेरे नदी में प्रवाहित किया जाएगा

    क्योंकि नदी की चाल तेज़ है इन दिनों...

    इधर राजधानियों के कुहरे में घूमते

    कॉर्टून

    एक उँगली कैमरे के खुटके पर एक घड़ी के काँटे पर रक्खे

    ऑफ़िस की फ़ाइलें बाँच रहे हैं

    कि रिहा होने के एक दिन पहले

    संक्रामक अस्पताल की लिफ़्ट में एक मरीज़ फँस कर मर गया

    क्योंकि नदी की चाल तेज़ है इन दिनों

    और पुल का निर्माण जब होगा नदी पर

    नींव में मरीज़ों की गली हड्डियाँ काम आएँगी—

    ख़ून से लदी ठेलेगाड़ियाँ

    पीब से तंग नालियाँ

    शराब से भरी ट्रॉलियाँ

    सब गुज़रेंगी इस पुल पर से

    और डॉक्यूमेंट्री की रील

    जब आफ़िसों की फ़ाइलों के पन्ने पन्ने पर लोग बैठ जाएँगे

    कहेगी, लोगो, अभी हमें बहुत काम करना है!

    पर लोग सुनेंगे सिर्फ़

    बर्फ़ की वदियों की नंगी सेल्यूट

    और चिटके शीशे-सा ख़ुश हो कहेंगे सिर्फ़

    आह! कितना वास्तविक पतझड़ है—ख़ूब!

    स्रोत :
    • पुस्तक : ज़ख़्म पर धूल (पृष्ठ 29)
    • रचनाकार : मलयज
    • प्रकाशन : रचना प्रकाशन
    • संस्करण : 1971

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