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पहाड़

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सुभाष तराण

और अधिकसुभाष तराण

    आपदाओं के आते ही

    फ़ाइलों की शक्ल अख़्तियार किए हुए

    नेताओं, पर्यावरणविदों, साहित्यकारों और पत्रकारों के साथ

    तबाही के मंज़र लिए हुए

    आपदाओं के लेखे-जोखे सहित

    बहुत जल्द धमकता है पहाड़

    शहर के एक सेमिनार में

    महत्त्वकाँक्षाओं के तत्वावधान से शहर में उसके लिए

    एक मंच उभर आता है

    और मंच पर नज़र आता है एक जनरल

    जो कहता है कि सब कुछ है आसान

    उसको मिलने वाली सरकारी सुविधाओं की तरह

    उसके उन आदेशों की तरह

    जिनका पालन होना ही है

    उसके बाद मंच पर एक कप्तान भी नुमायाँ होता है

    जो कहता है आदेशों का पालन होना चाहिए

    अगर आदेश का पालन हो तो नहीं आती हैं आपदाएँ

    जो थोड़ी बहुत आती हैं

    वे डरकर भाग जाती हैं

    तार्किक महत्त्व की बेतुकी कहानियों के साथ

    मंच पर दिखता है फिर एक कर्नल

    जो कहता है

    ईश्वर समझो ख़ुद को

    पहाड़ को समझो एक रोड़ा

    जिसे ज़रूरत पड़ने पर

    उठाकर जेब में रखा जा सके

    फिर रह नहीं जाती ज़रूरत

    नदी, पहाड़ और पेड़ को कुछ भी समझने की

    और अंत में एक अपील के साथ

    मंच पर आता है एक पत्रकार

    और बताता है कि ऊपर जो बातें कही गई हैं

    उन्हें सच मान लिया जाए

    आपको यह सब सुनने के बाद

    बहुत आसानी के साथ

    यह समझ में जाता है

    कि वह क्या समझाना चाहते हैं आपको।

    स्रोत :
    • रचनाकार : सुभाष तराण
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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