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मुझे चाँद में देखा होगा

mujhe chaand mein dekha hoga

अजित पुष्कल

अजित पुष्कल

मुझे चाँद में देखा होगा

अजित पुष्कल

और अधिकअजित पुष्कल

    जब-जब पुरइन फूली होगी,

    तब-तब तुमने, झील किनारे,

    हँसकर मुझको हेरा होगा।

    उस दिन भी पुरइन फूली थी

    मंद वायु थी, गोधूलि थी,

    तुमने कमल, पाँखुरी चुन-चुन

    केश सजाए, रति छू ली थी।

    कमल पँखुरियों ने—

    तुमको दहलाया होगा,

    मेरे कल्पित युग्म करों ने

    तुम्हें अचानक घेरा होगा।

    हँसकर मुझको हेरा होगा।

    जब-जब कोयल कूकी होगी,

    तब-तब तुमने अमराई से,

    हृदय खोलकर टेरा होगा।

    क्योंकि जब कोयल बोली थी

    खुली दिशाएँ अनबोली थीं,

    फूले लाल पलाश, लाज मद

    पी झूले थे, तुम झूली थीं।

    किसी फूल ने—

    भूला स्वप्न जगाया होगा,

    तुमने झरा फूल डाली का

    मेरे लिए सहेरा होगा।

    हृदय खोलकर टेरा होगा।

    जब-जब बादल आए होंगे,

    तब-तब तुमने विह्ल होकर

    मुझे संदेशे भेजे होंगे।

    तब भी तो बादल आते थे

    मेड़ों पर घिर छा जाते थे,

    हम तुम दोनों धुन मन बाँधे

    खेतों में बीजे बोते थे।

    गीत तुम्हारा अब की तो

    भय खाया होगा,

    ऊब घुटन के तीखे क्षण वे—

    तुमने कहाँ, सहेजे होंगे।

    मुझे संदेशे भेजे होंगे।

    जब-जब पूनम आई होगी,

    तब-तब तुमने आँगन में आ,

    मुझे चाँद में देखा होगा।

    पहन चाँदनी—

    पूनम पहले भी आती थी,

    धवल श्याम,

    परछितिया सारी रंग जाती थी।

    हरी नीम को खुली बाँह में,

    फँसकर, चुपके मुस्काती थी।

    नीम तले तो,

    अनायास कुछ खटका होगा।

    धवल रात में, धूमिल मग में,

    चाँद भटकते देखा होगा।

    मुझे चाँद में देखा होगा।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अजित पुष्कल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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