मेरे देश के रजिस्टर में मेरा अभिप्राय
mere desh ke register mein mera abhipray
नारायण सुर्वे
Narayan Surve
मेरे देश के रजिस्टर में मेरा अभिप्राय
mere desh ke register mein mera abhipray
Narayan Surve
नारायण सुर्वे
और अधिकनारायण सुर्वे
ख्रुश्चेव, कैनेडी, नासर वगैरा वगैरा
इनके बीच मेरा नाम ठीक नहीं है
इसलिए पच्चीसवाँ पन्ना लाँघकर
छब्बीसवें पन्ने पर गुलाब का फूल रख
मैं शुरू कर रहा हूँ
ऐ मेरे देश
सूर्यकुल के हम भी एक सदस्य हैं इसलिए
सूर्यकुल को शोभनीय हो ऐसा ही बर्ताव करें
वैसे आज मैं ख़ुशियों से खिल नहीं गया हूँ
न उदास हूँ
इन दोनों के बीच, ऐ देश
हम कहीं खड़े हैं
कदाचित यह भी हो सकता है—तुम और मैं
दोनों भी वयस्क हो गए हों
मैं इधर आने के लिए निकल पड़ा तब
हरे वृक्षों ने नगर की सीमाओं तक
मुझ पर ममता का हाथ रख दिया
नदियाँ इठलातीं पीछे रुक गईं
मुझे विदा करने के लिए मुझसे भी आगे दूर तब
पत्ते फड़फड़ाते हुए पंख लगाकर उड़ गए
रास्ते में तो मेरे आगे ही जा रहे थे
उनमें से एक तो
बहुत ही बातूनी लगा
तुम्हें यदि रास्ता नहीं मालूम
तो मैं बताता हूँ—कहते हुए, मुझसे आगे चलने लगा
ऐ मेरे देश
ये नगरों से उभरे हुए महानगर
उन्हें बंद करने-खोलने वाले रोशनी अँधेरे के दरवाज़े
चारों ओर के गहरे-हरे देहातों को
नोंचने वाली पगली
उनमें से एकाध मदालसा खटिया-तोड़
ये रास्ते ये रक्तवाहिनियाँ और
यह अपना प्रचंड महानगर
धड़धड़ाते बायलर की तरह यह हृदय
तुम्हारा और मेरा
हर्ष से नहाया जाता है
नक्षत्रों की तरह टिमटिमाता है, तेरी अँगुली में
हीरे की अँगूठी-सा झिलमिलाता है
बहर-ए-अरब के किनारे से
तुमने कभी ख़ुद को गौर से देखा है?
सूर्यकुल के हम सदस्य हैं इसलिए कह रहा हूँ
यह जो आकाश है ना
उसे रंगों के चार ब्रुश मारना होगा
लाल सूर्यपिण्ड़ को
भिलाई की भट्टी की ओर मोड़ना होगा
उलीच कर पानी समुद्र का
उसको भी एक सुंदर नाम देना होगा
खेतों के टुकड़े झटककर फिर से
ठीक तरह करीने से बिछाना होगा
और ऐ देश, देश किसे कहते हैं
उसका भी हमें ठीक से ख़याल करना होगा
संसद में प्रस्ताव आने के पहले—
उन्हें परबत की आगोश में पत्तों की कोमल छाँव में
फूलते हुए बादलों की ठंडक में
बुवाई के मृण्मय हाथों फहराना होगा
उन्हें भेजना होगा कारखानों की ओर
मध्यांतर में लेथ से टिककर
कूपनवाली टिकली की चाय ले-दे करते हुए,
चर्चा करते हुए, अनावश्यक शब्दों को
फौलादी चिमटी में पकड़कर
हथौड़ों की चोट से नया बनाना होगा
गाँव की बाहरी बस्ती में
चमड़ा कमाते कमाते
दो चार टाँको को उस पर लगाना होगा
और विश्वविद्यालयीन कक्षाओं में प्रवेश करते हुए
कुलपति के क्रुद्ध चेहरे जैसा उन्हें नहीं आना होगा
दोस्त के आने पर जैसे ख़ुशबू फैल जाए
वैसे आना होगा
और ऐ मेरे देश
सूर्यकुल के हम सदस्य हैं इसलिए कह रहा हूँ
नारी मात्र एक मादक उद्दीपक चीज़ है
बस इतना ही आज के कुलीन लोगों की नज़र में अर्थ है
फूलवाले के पास की एक पुड़िया
एक काया, गुड़िया, ओफ...
ऐ देश मैं शर्म के मारे दबा जा रहा हूँ
यह और ऐसी कई चीज़ें याद करते हुए
सीने में पेट्रोल-सा कुछ संचित कर चल रहे हैं
अगर किसी समय
बेचैन-से-हम
जिस्म की बत्तियाँ बटकर प्रज्वलित कर
तुम्हारे दीवट में भिगाकर
एक नई क्रांति की ओर, नए प्रकाश की ओर
अगर हमारे अश्व दौड़ने लगे तो ऐ देश—
कृतघ्नता के इल्ज़ाम हम पर मत लगाना
हम तुम्हारे आकाश के तारे हैं
यह मत भूलना।
- पुस्तक : साठोत्तर मराठी कविताएँ (पृष्ठ 18)
- संपादक : चंद्रकांत पाटील
- रचनाकार : नारायण सुर्वे
- प्रकाशन : साहित्य भंडार
- संस्करण : 2014
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