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मैं एक आहट आगत की

main ek aahat aagat ki

मनीषा कुलश्रेष्ठ

मनीषा कुलश्रेष्ठ

मैं एक आहट आगत की

मनीषा कुलश्रेष्ठ

और अधिकमनीषा कुलश्रेष्ठ

    मैं एक मिथक हूँ सखि

    मुझे जानना उपनिषदों में गहरे उतरना है

    आसान होता है किसी धर्म को उसकी स्थूलता में पकड़ना

    अपनी आस्थाओं का विज्ञापन करना

    इसे दर्शन

    यह मानोगी तो गहरे उतरोगी

    मैं एक भ्रम हूँ सखि

    मुझे छूना मृगमरीचिका है

    कितना भागोगी मेरे पीछे, निर्मल नद की चाह में

    बहुत कठिन है, छायाओं के आर-पार उतरना

    प्रेम है मेरा धर्म

    जितना जानोगी उलझ जाओगी

    मैं एक आहट हूँ आगत की

    मेरे सिरहाने दर्शन है, पैताने कला

    एन वक्ष पर कौस्तुभमणि-सा सजा प्रेम है

    वारुणी की हल्की हिलोर है तुम्हारा असमंजस

    सुनोगी तो मान पाओगी

    सखि, मैं प्रतिच्छाया नहीं तुम्हारी

    मैं स्वयं संपूर्ण हूँ,

    सूर्य अग्नि पुष्प बन मेरे अलकपाश में गुँथा है

    चाँद कंगन में सजता है

    समुद्र मेरी राह तकते हैं,

    पर्वत ऊँघते हैं प्रतीक्षा में मेरी

    मिलोगी तो जान जाओगी

    मत खेलो खेल सखि

    मैं जीतने के लिए नहीं हारने के लिए खेलती हूँ

    मत बिछाओ बिसात बातों की

    मेरे शब्द जब पां से बनते हैं, लोग अर्थ हार जाते हैं

    खेलोगी तो जीत कर भी हार जाओगी।

    स्रोत :
    • रचनाकार : मनीषा कुलश्रेष्ठ
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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