छद्म में सदा
रहा नहीं जा सकता अज्ञातवास में
फिर लौट आना होगा
अपनी-अपनी कर्मभूमि
निरपेक्ष रहना संभव नहीं
क्योंकि युद्ध यहाँ अनिवार्य
और सबको
पक्षभुक्त होना ही पड़ता।
यहाँ जीवन के महाकाव्य में
सब कुछ लिपिबद्ध
साम्राज्य और क्षमता के लिए
चुनाव का कपट पाशा
भूसंस्कार क़ानून में भूमिहीन के लिए
सूच्यग्र मेदिनी
हरिजन बस्ती का लाक्षागृह
खेत और कारख़ाने का रणांगन
अभाव और ग़रीबी का व्यूह
विरोधियों के अमोघ ब्रह्मास्त्र
और निम्नतम लोगों की
विवस्त्र असहायता
कोई नैतिकता नहीं
कूटनीति के विचार-विनिमय में
वृद्ध लोग याचना कर लेते
यौवन का उत्तराधिकार
मान-सम्मान समर्पित हो जाता
अनुचित वायदे पूरे करने में
सभा के बीच बलात्कार होता
साक्षी अंधे बन जाते
विभाजित हो जाता सतीत्व
यहाँ कामांधता सर्वस्वीकृत
नारी केवल एक गर्भाशय
शठता रोजमर्रे की घटना
और पराक्रम ही अधिकार है।
सनत के धर्मक्षेत्र में
साइरेन की शंखध्वनि
घोषणा कर देती युद्ध की
सूर्यास्त नहीं होता उसकी समाप्ति
पुनः रणसज्जा की प्रस्तुति मात्र
इस युद्ध का नहीं कोई नीति-नियम
केवल हार जाना ही अधर्म है।
- पुस्तक : बीसवीं सदी की ओड़िया कविता-यात्रा (पृष्ठ 146)
- संपादक : शंकरलाल पुरोहित
- रचनाकार : जगन्नाथ प्रसाद दास
- प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
- संस्करण : 2009
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