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किताब का सवाल

kitab ka saval

नवल बिश्नोई

नवल बिश्नोई

किताब का सवाल

नवल बिश्नोई

और अधिकनवल बिश्नोई

    ख़्वाब में यूँ मेरे इक दिन किताब आई

    इंसाँ के फ़रेब का लेकर हिसाब आई

    जुड़ता चला यूँ हक़ीक़त का ख़्याल।

    फिर नज्म बन गई किताब का सवाल

    ये पन्ने, ये जुमले, ये लफ़्ज़ों भरी लाइने

    लिखने को तहरीर समझने को दिए मायने

    ये दास्ताँ, ये वाक़िए, ये क़िस्से-कहानियाँ

    रईसी, कंगाली, मजबूरी और मेहरबानियाँ

    ज़िंदगी को समझने का जरिया दिया

    नज़र दी तुझे और नजरिया दिया

    कि दाद, तनकीद और करने को तुझे शिकायत भी दी

    दिया होंसला, जुनूँ, इंतिबाह और हिदायत भी दी

    ना फ़कत थे लफ्ज़, इल्म की अमानत भी दी

    दी शऊर-ओ-नज़र, अक्ल-ओ-जेहानत भी दी

    मैने तुझको हमेशा कुछ बनने का मौक़ा दिया

    इंसान तूने मगर मुझको धोखा दिया

    जब-जब दिखा तुझे दिखा फ़ायदा

    इसलिए तूने भूला तहज़ीब और कायदा

    हर दिन किसी पढ़ने वाले का रास्ता ताकती हूँ

    मैं अलमारी में पड़ी बेचारी-सी झाँकती हूँ

    स्रोत :
    • रचनाकार : नवल बिश्नोई
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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