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हम

hum

अनुवाद : पृथ्वीनाथ मधुप

चम चम चमकीले आडम्बर

हम स्वयं समय के आदमगर

हम पश्चिमी बनावट के बंदे

शहदीली भाषा बात ज़हर

मोहक लेबल डिब्बे रीते

हम ‘विस्कर पुलर’ ‘टेल टुविस्टर’

हम नई सभ्यता के दीवाने

हम चाहें लाभ पाएँ, हानि

बेचा प्राचीन हमने बेचा

बेचा कबाड़ियों को सारा

जो कुछ नया सुना—

मूर्खों को वह सब बेचा

बनवा कर ऊँची इमारतें

सेतु पुराने ढहा दिए

रंगीन प्रकृति को क़ैद किया

इस्कीमों के ‘माइकल’ नचा-नचा

भ्रम के कबूतर को दी उड़ान

हम काग़ज़ टुकड़ों फाइलों के

हम बँधे—

बिंदियों रेखाओं में

हम ‘लायन क्लबों’ ताशों के

हम ‘ओके सर’ हैं बॉसों के

हम सभाविलासों के दिलदार

सच में निर्धन के हैं ‘ग़मख्वार’

‘व्यल, हू आर, यू, हौ हैव यू कम’

जिनके लिए कभी बजा सरगम

ऐसे रसवाले गान हैं हम

हम आँचल भरा सीधे सच्चे फूलों के

दिन के क़ैदी रात के तारे हम

हम मेहनत से हो चूर

चलते-फिरते आकार

हम बिना आवरण कामनाएँ-सी

छिप-छिप घूमती-फिरती

दिल हमारे डूबे-डूबे

हँसी अधर पर चिपकाए

हम जैसे रेल की पटरी हैं

पता ऊपर से क्या-क्या

जाने क्या-क्या कब-कब गुज़रा

अंहकारी हम ‘कैस्यट कल्चर’ के

शत-शत गाने फ़िल्मी पीते

मसलों का लोहा चबा रहे

अंधी गलियों के अँधियारों में

हम अपनी आँखों को मलते

हम ताज, टाट में जो लिपटे

हम बहुत पुराने प्रेस के हैं

अख़बार कटे औ’ धुले-धुले

बदा भाग्य में उधार फिर भी गर्वीले

हम शीतल-शीतल झोंका हैं

हम वर्षा हैं जब आग लगे

हम परती के हैं हरे चिनार

हम सोचों के हैं उजियारे

हम प्रीत-प्यार के रखवारे

हम दल के दल हैं शलभों के

हम हों तो—

सब हो जाएगा शोभाहीन।

स्रोत :
  • पुस्तक : उजला राजमार्ग (पृष्ठ 57)
  • संपादक : रतनलाल शांत
  • रचनाकार : अर्जुन देव 'मजबूर'
  • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
  • संस्करण : 2005

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