आवारा कुत्ते ख़तरनाक बहुत होते हैं
पालतू कुत्ते के दाँत नहीं होते हैं
दुम होती है,
दुम भी टाँगों के बीच दबी होती है
दरअसल पालतू कुत्ते की धुरी ही दुम होती है
वो आक़ा के सामने दुम हिलाते हैं
और उसी हिलती दुम की रोटी खाते हैं,
आवारा कुत्ते दुम हिलाना नहीं
सिर्फ़ ग़ुर्राना जानते हैं,
जब उनमें भूख जागती है
वो भूख अपना हक़ माँगती है
उनकी हर भूख का निवाला सिर्फ़ रोटी नहीं होती है
वो निवाला घर होता है
खेत होता है, छप्पर होता है
उस भूख की तृप्ति कुचला नहीं
अपना उठा हुआ सर होता है,
इन हक़ों की आवाज़
उन्हें आवारा घोषित करवा देती है
और ये घोषणा उन्हें ये सबक सिखा देती है
कि माँग के हक़ नहीं, सिर्फ़ भीख मिला करती है
इसीलिए पालतू कुत्तों की दुम निरंतर हिला करती है,
उनका यही रूप व्यवस्था को भी भाता है
सो उन्हें हर वक़्त चुपड़ा निवाला
चाँदी के वर्क में लपेट, बिना नागा मिल जाता है,
बदले में व्यवस्था उनसे तलवे चटवाती है
और बीच-बीच में उन्हें भी सहलाती जाती है,
आवारा कुत्ते उन्हें डराते हैं
वो पट्टे भी नहीं बँधवाते हैं,
इसीलिए चल रही हैं कोशिशें तमाम
कि इन कुत्तों को ग़द्दार और आवारा घोषित कर दो
और इनके सारे जिस्म में गोलियाँ भर दो,
अपनी सत्ता वो ऐसे ही बचा पाएँगे
चुपड़े निवालों के लालच में
हर उठती आवाज़ को पट्टा पहनाएँगे,
हक़ के लिए उठती हर आवाज़ का
घोंट देंगे गला
और पालतू कुत्तों की देके मिसाल
सबसे तलवे ही चटवाना चाहेंगे,
सिर्फ़ पालतू कुत्ते ही मिसाल होंगे वफ़ादारी की
आवारा कुत्ते सज़ा पाएँगे थोपी हुई ग़द्दारी की,
ज़माना इन्हें नहीं अपनाएगा
पर इनके नाम से ज़रूर थर्राएगा।
हो जाओ सावधान,
सत्ता और व्यवस्था के ठेकेदारो,
कि जब ये आवारा कुत्ते अपने जबड़ों से
लार नहीं लहू टपकाएँगे
तब ओ सत्ताधीशो, वो तुम्हारी सत्ता की
नींव हिला जाएँगे
और इस नींव की हर ईंट चबा जाएँगे,
आवारा के तमग़े को सजा लेंगे शीेश पर ताज की तरह
लेकिन पालतू कभी नहीं कहलाएँगे।
- रचनाकार : दामिनी यादव
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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