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चौदहवीं मंज़िल से

chaudahwin manzil se

अनुवाद : दुष्यंत

मोनालिसा जेना

मोनालिसा जेना

चौदहवीं मंज़िल से

मोनालिसा जेना

और अधिकमोनालिसा जेना

    कितने शीतल

    और कितने विच्छिन्न

    तुम उस दिन

    जब दूर चले गए

    कंक्रीट के पचास फीट ऊँचे दो खम्भों के अंदर...

    तुम्हारी बाँहों जैसे

    वे निर्लिप्त, मुझे पहचान नहीं रहे थे...

    वही सबूजिमा पार्वत्य अपराह्न में

    हमारे बीच अविश्रान्त नीलिम वर्षा

    मेरी अश्रुल ऊष्मता

    तुम्हारे पाँवों में

    उस दिन भी शैवाल बनकर

    ठहर जाने को चाहता था, मेरा अभिसार...

    मगर तुम रहते थे अपने देशान्तर में

    भीग रहे थे, अपने कोलाहल में

    अनकही उदासी में सुबक रहे थे अकेले-अकेले

    प्रेम के सात-संकेत

    थे पर्याप्त उस दिन।

    सिमट जाती थी चाँदनी रात

    चौदहवीं मंज़िल की चट्टानों से।

    जब मैं मिली तुमसे

    सौ-सौ वर्षों की प्रतीक्षा के अंत में

    तुम कैसे ले आए, वैसे लग्न में

    इतने विपर्यय?

    भयहीन भँवर में मेरा विसर्जन,

    कैसे बदल गए तुम

    एक प्रेमी नहीं बनना चाहता था

    असहाय, अपरिचित

    अंशावतार।

    स्रोत :
    • पुस्तक : रहो तुम नक्षत्र की तरह (पृष्ठ 108)
    • रचनाकार : मोनालिसा जेना
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2018

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