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बीना अम्मा के नाम

bina amma ke naam

शिवम चौबे

शिवम चौबे

बीना अम्मा के नाम

शिवम चौबे

और अधिकशिवम चौबे

    दिन के दूसरे पहर

    जब सो चुका होता दुआरे का शमी

    महुए थक जाते किसी बिसाती की बाट जोहते हुए

    पोखरे का पानी ठहर जाता गरड़िए के संतोष में

    गाय के पास से आती चभर-चभर की आवाज़ें रुक जातीं

    बाबा काँधे पे गमछा डाल निकल जाते गाँव के पुरुब

    जब सूरज सजा-बजा रहा होता अपनी दुकान

    और सब कुछ ध्यानस्थ आँखों जितना शांत होता

    तब अम्मा के गीतों में

    सुपेले पर मंजीरे की तरह बजने लगते गेहूँ के दाने

    ‘‘कवन देसवा गइला हो रामा कइके बहाना,

    कइके बहाना हो

    आवा देखा दुख के बटुलिया

    भरल बा करेजवा में हो

    आवा देखा न…’’

    गाते हुए अम्मा अलगाती जाती एक-एक ढेला

    एक-एक खर, एक-एक फूस

    जतन से बिच्छती जाती दानें

    गेहूँ के साथ अम्मा के गीत भी

    समाते जाते डेहरी के उदर में

    अम्मा सुपेले को ढोल की तरह थपकाती,

    जैसे सुना रही हो लोरी,

    जैसे सुला रही को किसी किसान की थकी आत्मा

    लेकिन एक दिन काँपते हाथों से

    सूप फटकते हुए अम्मा ने जाना

    कि सूप फटकते-फटकते

    वह भी बदल गई है—

    गेहूँ के दानों में

    उसकी कोठरी में भी पसर गया है—

    डेहरी जितना अँधेरा

    उसे भीतर-भीतर ही चाले डाल रही हैं बहुएँ

    बेटे ने अलगा दिया है उसे,

    उसके ही तरीक़े से

    कोठरी का सामान बाँट दिया गया है

    पच्छू टोला की लड़कियों में

    और बनाया जा रहा मेहमानों के रहने का कमरा

    गाड़ी जा रहीं बल्लियाँ,

    बनाया जा रहा गारा

    उठाई जा रही हैं—

    बग़ैर नींव की दीवारें

    तुष्ट हैं सब सिवाय डेहरी और सूप के

    डेहरी की वर्जनाओं को तोड़ते हुए

    आर्त्त स्वरों में रो रहे हैं गीत

    पछाड़ खा गिर रहे सुपेले की गोद में,

    गूँज रहे हैं शमी में, पोखर में, गरड़िए की हाँक में,

    बिसाती की पुकार

    और गाय की जुगाली में भी चिंहुक रहे हैं गीत—

    ‘‘कवन देसवा गइला हो रामा,

    कइके बहाना हो… आवा देखा न…”

    इन सबके बीच

    चुप है अम्मा

    देख रही है

    अपने ही बुने हुए सुपेले से

    अपना ही निर्वासन।

    स्रोत :
    • रचनाकार : शिवम चौबे
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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