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आसमान का क़रीबी गाँव बिथरी

asman ka qaribi gaanv bithri

सुभाष तराण

सुभाष तराण

आसमान का क़रीबी गाँव बिथरी

सुभाष तराण

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    बर्फ़ से लदी

    फ़तेह पर्वत की अंतिम धार की ओट में

    किसी अनुशासित सैन्य टुकड़ी की तरह घात लगाए

    बैठा नज़र आता है बिथरी गाँव

    छापामार गुरिल्लाओं की टोली से

    इस गाँव के घर

    भीमकाय देवदार और बाँज के वृक्षों की आड़ लिए

    मोर्चा सँभाले हुए है

    आसमान से उतरती

    सर्द मौसम की ठिठुरती ठंड के ख़िलाफ़

    सिपाही के शिरस्त्राण-सी है

    प्रत्येक घर पर फैली पटाल की ढलवाँ छतें

    और युद्धरत लड़ाके के बख़्तरबंद-सी नज़र आती है

    देवदार के मज़बूत शहतीरों

    और पत्थरों की जुगलबंदी से बने घरों की दीवारें

    हिमालय के इस उच्च भू-भाग पर

    सर्दियों से सीधी टक्कर लेने वाले इस गाँव के घरों को

    आप चाहे तो जंगबाज़ भी कह सकते है

    जीवित रहने के ज़रूरी संसाधनों से लैस

    किसी प्रशिक्षित योद्धा की तरह

    गाँव का प्रत्येक घर

    रसद के रूप में रखे हुए है

    अपनी एक ओर

    अनाज की निश्चित खेप से भरा एक कोठार

    जबकि बाँज की सूखी लकड़ियों का ज़ख़ीरा

    किसी आयुध भंडार-सा

    दूसरी ओर सुरक्षित रखा गया है

    जुझारू युवा-सा आत्मबल है

    इन घरों की पहली दोनों मंज़िलों के

    अंदर रखे गए पशु

    और इस आत्मबल को पोसती है

    पालतुओं के चारे-चबैने

    और सूखी घास से लदी इन घरों की बारहदरियाँ

    गाँव के घरों में बिना खिड़की के कमरे

    मालूम पड़ते है सरहद पर तैनात किसी टैंक के केबिन

    जहाँ तय होती है रणनीति गिरते पारे के विरुद्ध

    ख़ालिस काठ से गढ़े गए

    इन घरों के तीसरे मालों पर

    अहर्निश सुलग रहे चूल्हे

    जीवित चेतना है संघर्ष की

    जो पोसती है संवेदनशीलता को

    और ऊर्जा देती है जीवन को।

    स्रोत :
    • रचनाकार : सुभाष तराण
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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