तुम जिनको खत कहते हो
tum jinko khat kahte ho
तुम जिनको खत कहते हो वे
खत लगते है मुझे परिंदे॥
थामे हुए सफ़र की गठरी
इनका कोई ठौर नहीं है
कहने को पर्याय कई पर
इनके जैसा और नहीं है।
अभी इधर के रहवासी थे
अभी उधर के है बाशिंदे॥
सफ़र थैलियों में करते पर
मत कहना आराम बहुत है
सुख दुःख की ख़बरें भीतर है
सचमुच इनको काम बहुत है।
दफ़्तर होता मेलजोल का
तो खत ही होते कारिंदे॥
जो न किसी से कह पाए वो
कहने दिया हमारे मन को
अनभेजे कितने पत्रों ने
सहज समेटा था टूटन को।
जीवन का संगीत साधने
खत आए बनकर साजिंदे॥
- रचनाकार : चित्रांश वाघमारे
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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