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सुघर बना संग जागी
सुघर बना संग जागी मनमोहन सों अनुरागी।उर सों उर लपटाय प्रीतम सों अधर सुधा पीवन लागी।
कुंभनदास
पौढ़ी पिय संग वृषभानु कुमारी
पौढ़ी पिय संग वृषभानु कुमारी।निरखि वदन छवि नंद नंदन के, लागि कंठ सौ प्रान-पियारी॥
छीतस्वामी
पिय संग जागी वृषभानु दुलारी
पिय संग जागी वृषभानु दुलारी।अंग-अंग आलस जंभात अति, कुंज सदन ते भवन सिधारी॥
छीतस्वामी
मैं तो साँवरे संग खेलन जैहौं
गोपाल
लाल संग रास-रंग
लाल संग रास-रंग, लेत मान रसिक-रवंनि,ग्रग्रता ग्रग्रता तत तत तत, थेई थेई गति लीने।
छीतस्वामी
मैं तेरे संग मुरली स्याम बजाऊँ
मैं तेरे संग मुरली स्याम बजाऊँ।ऐसेई पिय सब छेदनि पै, अँगुरी चपल चलाऊँ॥
ललितकिशोरी
करौं मन! हरि भक्तन कौ संग
करौं मन! हरि भक्तन कौ संग।भक्तन बिन भगवंत दुर्लभ अति जग यह प्रगट प्रसंग॥
किशोरीदास
राधा निसि हरि के संग जागी
राधा निसि हरि के संग जागी।जमुना पुलिन सघन कुंजनि में, पिय अंग-अंग मिलि कै अनुरागी॥
छीतस्वामी
मै तेरे सँग मुरली स्याम बजाऊँ
मै तेरे सँग मुरली स्याम बजाऊँ।ऐसेई पिय सब छेदनि पै, अँगुरी चपल चलाऊँ॥
ललितकिशोरी
जिहिं कीनो परपंच सब
जिहिं कीनो परपंच सब अपनी इच्छा पाई।ताको हौं बंदन करौं हाथ जोरि सिर नाई॥
जसवंत सिंह
मैं तो खेलूं प्रभु के संग
मैं तो खेलूं प्रभु के संग होरी रंगभरी।जित देखूं तित रम रहौ रे सबमें व्यापक है हरी॥
सहजोबाई
बावरे के संग-साथ बावरी सी भई मैं
बावरे के संग-साथ बावरी सी भई मैं,बाप हू विवाह दीनीं बावरौ सौ जान कें।