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बैठे घनश्याम सुंदर खेवत है नाव
बैठे घनश्याम सुंदर खेवत है नाव।आज सखी मोहन संग खेलवे को दाव॥
परमानंद दास
म्हारी नाव फँसी मझधार
म्हारी नाव फँसी मझधार, सतगुरू तारे तो तरे।नाव पुरानी वजन घनेरो, नहीं कोई खेवनहार।
सैन भगत
देखु सखी, नव छैलछबीलो
देखु सखी, नव छैलछबीलो, प्रात समै इततें को आवै?कमल समान बड़े दृग जाके, स्याम सलौनो मृदु मुसुकावै॥
नारायण स्वामी
यह नइया ढगमगि नाम बिना
यह नइया ढगमगि नाम बिना। लाइ ले सत्त नाम रठना॥इत उत्त मौलल अगम पना। अहै जरूर पार तरना॥
दूलनदास
ए हरि, बंदओं तुअ पद नाए
जतने जतेक धन पाएँ बटोरल मिलि-मिलि परिजन खाए।मरनक बेरि हरि केओ नहि पूछए एक करम सँग जाए॥
विद्यापति
ब्रज-नव-तरुनि-कदंब-मुकुट मनि
ब्रज-नव-तरुनि-कदंब-मुकुट मनि स्यामा आजु बनी।नख-सिख लौं अंग-अंग माधुरी मोहे स्याम धनी॥
हितहरिवंश
कवण न हूवा! कवण न होयसी
गीता नाद कविता नाऊं, रंग फटा रस टारूँ॥फोकट प्राणी भूरमे भूला, भलजे यों चीन्हों करतारूँ।