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प्रथम आदि ओंकार तीन ग्राम चौदह सुर
प्रथम आदि ओंकार तीन ग्राम चौदह सुर,जब-जब पावत गुनी जन कर-कर विचार।
गोपाल
नाद ब्रह्म कौ अगाध ब्यौरो जानत
सप्त सुर तीन ग्राम इकईस मूर्छना,उरप-तिरप लाग-डाट राग छत्तीसौ तियाइया आइ आइया॥
बैजू
जय सरस्वती-गनेस-महादेव
भैरव-मालकोश-हिंडोल-दीपक-श्री-मेघ, मूर्तिमंत हिरदै रहैं ठाठ॥सप्त स्वर, तीन ग्राम, इकईस मूर्छना,
गोपाल
तान गजराज ज्ञान कीनौ महावत
खरज पाखंड री तीन ग्राम सकल आधार,ढुरन-मुरन रन सौं जीत, मारत सब एक-एक पर॥
बैजू
तू आदि भवानी जग जानी सर्वानी
तान ताल सुद्ध राग-रंग अक्षर दै बानी॥सप्त सुर तीन ग्राम इकईस मूर्छना उनचास कूट तान,
बैजू
जाहि लगन लगी घनश्याम की
अस्तुति-निंदा करौ भलैहीं, मेंड़ तजी कुल-ग्राम की।'नारायण' बौरी भई डोले, रही न काहू काम की॥